हम पागल हैं ???
हम पागल हैं ???
बुला के पागल हमें
क्यूँ पागलों का अपमान करते हो?
हकीकत जानते नहीं
या बयां करने से डरते हो?
हम पागलों से
एक डिग्री उप्पर रहते हैं.
तभी तो तुमको अपना
जिगरी दोस्त कहते हैं.
-अंकित
बुला के पागल हमें
क्यूँ पागलों का अपमान करते हो?
हकीकत जानते नहीं
या बयां करने से डरते हो?
हम पागलों से
एक डिग्री उप्पर रहते हैं.
तभी तो तुमको अपना
जिगरी दोस्त कहते हैं.
-अंकित
दिन प्रतिदिन देखते सुनते वो कुछ नया सीखती जाती है
हो रही है बड़ी वो अब नए भावों को दर्शाती है …
अब शब्दों का उसे मोल पता है,
नित नयी शब्दावली सुझाती है …
सही शब्द बतला देते हैं तो
कंठस्त कर हमको ही सिखलाती है …
संगीत से भी प्रेम बहुत है
हिंदी फिल्मों में भी रूचि दिखाती है …
अंग्रेजी लय में मिश्रित हिंदी भाषा के
लोरी और गीत भी गाती है …
जब भी कोई चीज़ नयी मिले, बाबा को फ़ोन लगाती है
“Web-cam” के जरिये चाचा, अम्मा और बाबा को सारी बात सुनाती है …
गुडियाघर में खुद माँ बनके गुडिया को नहलाती है
माँ के जैसे ही बना के खाना अपनी गुडिया को खिलाती है …
रोज़ दोपहर मुझे दफ्तर में माँ से फ़ोन लगवाती है
“Papa come home quickly quickly” की गुहार लगाती है …
जब दोपहर के खाने पर मुझे घर में नहीं पाती है
तब माँ को दिखा घडी “Where is Papa?” कह कर हाथ घुमाती है …
मेरे घर में घुसते ही ख़ुशी से शोर मचाती है
“Papa has come” बोल बोल कर माँ को खींच खींच ले आती है …
कभी “ringa ringa roses” कभी “पकडो पकडो ” खिलवाती है
कभी अपनी गुडिया के लिए बनाया हुआ खाना मुझे खिलाती है …
सुनते सुनते वही एक कहानी ख्वाबों में खो जाती है
थोडी चंचल थोडी नटखट लेकिन अतिभोली,
मेरी बिटिया ऐसे सो जाती है …
-अंकित.
कभी साथ निभाना है,
कभी चलते अकेले जाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी इंतज़ार में दिन बिताना है,
कभी शाम का मंज़र सुहाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी दोस्ती बढ़ाना है,
कभी रंजिशें भुलाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी ख़ुशी का खजाना है,
कभी घमों का छुपाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी महबूब का मनाना है,
कभी खुद से रूठ जाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी बारिश में भीग जाना है,
कभी धुप में नहाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी बहु की अगुवाई है,
कभी बेटी की विदाई है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी नए खून का आना है,
कभी बड़े बूढों का जाना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी थमता नया ज़माना है,
कभी बदलता वक़्त पुराना है,
ये ज़िन्दगी ...
कभी बच्चे को चलना सिखाना है,
कभी दादा को पलंग तक ले जाना है,
ये ज़िन्दगी ..
कभी हँसना हँसाना है,
कभी कठिन सा ताना बना है,
ये ज़िन्दगी ...
ईश्वर का खिलौना है,
सुख दुःख का बिछौना है,
ये ज़िन्दगी ...
-अंकित.
प्रियतमा नहीं साथ में,
इसका जब अहसास हो,
तो क्या कीजियेगा ???
रखवाला नहीं पास में,
इसका जब आभास हो,
तो क्या कीजियेगा ???
बियाँबान रेगिस्तान में
उगलता आग आसमान हो,
तो क्या कीजियेगा ???
दरख्तों के अभाव में,
ना छाँव का निशाँ हो,
तो क्या कीजियेगा ???
बिखरते लम्हों के शोर में,
चटकती जीवन की डोर हो,
तो क्या कीजियेगा ???
कठिन जीवन के मोड़ में,
ना प्रभु का साथ हो,
तो क्या कीजियेगा ???
-अंकित
अब तक क्यों तुमने है मुंह की खाई ...
नहीं अभी तक ये बात समझ में तुमको आई ...
कब तक खड़े रहोगे चहुँ ओर जब जमी हो इतनी काई ...
खड़े संभल भी जाओ दौड़ की बात कर रहे हो तुम मेरे भाई ...
जहाँ हर बात प्यार से शुरू और ख़त्म होती हो छेड़े किया तुम वहीं लड़ाई ...
चलो पकड़ लो राह प्रेम की भला करेंगे अब तुम्हारा साई ...
-अंकित ।
सुनते हैं बहुत शोर
हम मैदाने जंग में
हो किसी की भी जीत
है इस मैदान की ये रीत
जान देनी है और लेनी है
दीवानगी कहो, बोलो देश-प्रीत
होती है खून की कीमत
कम मैदाने जंग में
सुनते हैं बहुत शोर
हम मैदाने जंग में
बैठे रह्ते हैं राजनेता
आरामदेह कुर्सी पर
सुरक्षा में वो दूर
नहीं आते कभी मैदाने जंग में
सिपाही की जान का
हो जाता है सौदा वहीं
कोसों दूर मैदाने ज़ंग से
हाँ तोड देता है वीर सिपाही
दुशमन की हिम्मत और अपना
दम मैदाने जंग में
सुनते हैं बहुत शोर
हम मैदाने जंग में
ऑ मेरे देश के वीर
तुझे मेरे शत-शत प्रणाम
तेरी हर कुर्बानी हर वीरगती को
देते हैं हम लाखों लाख सलाम
जय हिन्द !!!!
-अंकित।
रचना के ब्लोग पर मैंने उनकी रचना "तुम्हारे अस्तित्व की जननी हूँ मै" पढी । अच्छी भावपूर्ण कविता है । पढ़ के मैंने उनके ब्लोग पर टिप्पणी में कविता कि प्रशंसा करते हुए एक कविता में ही जवाब भी हाजिर किया जो नीचे लिखा है । किसी कारण से प्रशंसा टिप्पणी में दिखाई दी लेकिन जवाब नदारद तो मैंने सोचा शायद सही भी है । जब जवाब मेरी सोच की उपज है तो मेरे "ख्वाब और सोच" में ही क्यों न दिखे । :)
हाँ अफ़सोस रहेगा कि ये कार्यक्रम आगे नही बढ़ सका ...
पूछना है मुझे की क्या मेरे अस्तित्व को जन्माने वाली ....
सोचा है अस्तित्व अकेले तेरा भी नही था जब तक नही तुने मुझे जन्मा ....
तू मां भी मेरी है ,
मेरी ही है बहिन तू,
मेरे जीवन की तू ही सन्गिनी है पर फ़िर भी मेरी है,
मेरी पुत्री है और मेरी खुशी भी ,
जब तू पूरी मेरी है,
हर रूप में मेरी है,
फ़िर क्युं सोचुं तुझ्से बराबरी की,
बस तु मेरी है हां मेरी है....
मेरे अस्तित्व की जननी तेरे अस्तित्व का कारण मै हुं ...
हम साथी हैं जन्म जन्मान्तर के ...
रचनाकर ने इस ब्रह्मान्ड के हम दोनो को बनाया है....
न तू मुझ्से बढ्कर है न मै तुझ्से बढ्कर हुं ....
-अंकित.
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...
चल जाती है फिर पुरवाई मैं बेबस रह जाती हूँ ...
नही झिझकती पल भर को भी फिर श्रम में लग जाती हूँ ...
पुरवा अपना काम करे है मैं अपना कर पाती हूँ ....
जब तक ना हो सम्पूर्ण घोंसला, रहे अभाव सुरक्षा का, नींद कहाँ ले पाती हूँ ...
पुरवा निभाती है कर्म अपना मैं अपना धर्म निभाती हूँ ...
सीख लिया था पिछली बार जो उस से मजबूत बनाती हूँ ...
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...
-अंकित.
माँ को मम्मा मुझको पप्पा कह कर वो बुलाती है ....
सीख़ रही है हिंगलिश हमसे थोड़ा थोड़ा बतियाती है ...
भारत में दादा - दादी से मिलके अब वो आई है ....
दादा को बब्बा, चाचू को मनु और दादी को अम्मम्म बताती है ...
चार पैर के हर जीव को "भौ" बोल कर ऊँगली से दिखाती है ...
श्यामा पालतू हमारे घर की मेरी नन्ही गुडिया से घबराती है ...
लगी है चलने स्वयं आजकल यहाँ वहाँ चलती चली जाती है ...
डगमग डगमग चलते बढ़ते बड़ा उधम मचाती है ...
पहुँच जाती है रसोईघर में वो माँ का हाथ बंटाती है ...
उसकी पहुँच के सारे बर्तन राशन निकाल निकाल ले आती है ...
जब मैं घर आ जाता हूँ तो पकडो पकडो की रट लगाती है ...
पकङम पकड़ाई खेल खेल के फ़िर वो थोड़ा थक जाती है...
पहुँच जाती है सीधा अब वो कंप्युटर खुलवाती है ...
बब्बा से बात करनी है अब अपने अंदाज़ में बताती है ...
अपने आंसू पुन्छ्वाने के लिए दादा दादी को रिझाती है ...
उन्ही बब्बा को अम्मम्म को ये अपनी यादों से रुलाती है ...
भोली है प्यारी है सबकी आंखों का तारा बन जाती है...
अब वो अपने मुख से दिन भर की कथा भी सुनाती है ...
करके दिनभर भाग दौड़ वो रात तक थक जाती है ...
कभी मम्मा और कभी पप्पा के गले लग के मेरी बिटिया सो जाती है ...