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2008

भला करेंगे अब तुम्हारा साई

भला करेंगे अब तुम्हारा साई

अब तक क्यों तुमने है मुंह की खाई ...
नहीं अभी तक ये बात समझ में तुमको आई ...

कब तक खड़े रहोगे चहुँ ओर जब जमी हो इतनी काई ...
खड़े संभल भी जाओ दौड़ की बात कर रहे हो तुम मेरे भाई ...

जहाँ हर बात प्यार से शुरू और ख़त्म होती हो छेड़े किया तुम वहीं लड़ाई ...
चलो पकड़ लो राह प्रेम की भला करेंगे अब तुम्हारा साई ...

-अंकित ।

सिपाही !!!!

सिपाही

सुनते हैं बहुत शोर
हम मैदाने जंग में

हो किसी की भी जीत
है इस मैदान की ये रीत
जान देनी है और लेनी है
दीवानगी कहो, बोलो देश-प्रीत
होती है खून की कीमत
कम मैदाने जंग में

सुनते हैं बहुत शोर
हम मैदाने जंग में

बैठे रह्ते हैं राजनेता
आरामदेह कुर्सी पर
सुरक्षा में वो दूर
नहीं आते कभी मैदाने जंग में

सिपाही की जान का
हो जाता है सौदा वहीं
कोसों दूर मैदाने ज़ंग से
हाँ तोड देता है वीर सिपाही
दुशमन की हिम्मत और अपना
दम मैदाने जंग में

सुनते हैं बहुत शोर
हम मैदाने जंग में

ऑ मेरे देश के वीर
तुझे मेरे शत-शत प्रणाम
तेरी हर कुर्बानी हर वीरगती को
देते हैं हम लाखों लाख सलाम

जय हिन्द !!!!

-अंकित।

प्रश्न बराबरी का ???

रचना के ब्लोग पर मैंने उनकी रचना "तुम्हारे अस्तित्व की जननी हूँ मै" पढी । अच्छी भावपूर्ण कविता है । पढ़ के मैंने उनके ब्लोग पर टिप्पणी में कविता कि प्रशंसा करते हुए एक कविता में ही जवाब भी हाजिर किया जो नीचे लिखा है । किसी कारण से प्रशंसा टिप्पणी में दिखाई दी लेकिन जवाब नदारद तो मैंने सोचा शायद सही भी है । जब जवाब मेरी सोच की उपज है तो मेरे "ख्वाब और सोच" में ही क्यों न दिखे । :)

हाँ अफ़सोस रहेगा कि ये कार्यक्रम आगे नही बढ़ सका ...

प्रश्न बराबरी का ???

पूछना है मुझे की क्या मेरे अस्तित्व को जन्माने वाली ....
सोचा है अस्तित्व अकेले तेरा भी नही था जब तक नही तुने मुझे जन्मा ....

तू मां भी मेरी है ,
मेरी ही है बहिन तू,
मेरे जीवन की तू ही सन्गिनी है पर फ़िर भी मेरी है,
मेरी पुत्री है और मेरी खुशी भी ,
जब तू पूरी मेरी है,
हर रूप में मेरी है,
फ़िर क्युं सोचुं तुझ्से बराबरी की,
बस तु मेरी है हां मेरी है....

मेरे अस्तित्व की जननी तेरे अस्तित्व का कारण मै हुं ...
हम साथी हैं जन्म जन्मान्तर के ...
रचनाकर ने इस ब्रह्मान्ड के हम दोनो को बनाया है....
न तू मुझ्से बढ्कर है न मै तुझ्से बढ्कर हुं ....

-अंकित.

घोंसला !!!

घोंसला

तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...
चल जाती है फिर पुरवाई मैं बेबस रह जाती हूँ ...

नही झिझकती पल भर को भी फिर श्रम में लग जाती हूँ ...
पुरवा अपना काम करे है मैं अपना कर पाती हूँ ....

जब तक ना हो सम्पूर्ण घोंसला, रहे अभाव सुरक्षा का, नींद कहाँ ले पाती हूँ ...
पुरवा निभाती है कर्म अपना मैं अपना धर्म निभाती हूँ ...

सीख लिया था पिछली बार जो उस से मजबूत बनाती हूँ ...
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...

-अंकित.

मेरी बिटिया - साल प्रथम !!!!

मेरी बिटिया - साल प्रथम

माँ को मम्मा मुझको पप्पा कह कर वो बुलाती है ....
सीख़ रही है हिंगलिश हमसे थोड़ा थोड़ा बतियाती है ...

भारत में दादा - दादी से मिलके अब वो आई है ....
दादा को बब्बा, चाचू को मनु और दादी को अम्मम्म बताती है ...

चार पैर के हर जीव को "भौ" बोल कर ऊँगली से दिखाती है ...
श्यामा पालतू हमारे घर की मेरी नन्ही गुडिया से घबराती है ...

लगी है चलने स्वयं आजकल यहाँ वहाँ चलती चली जाती है ...
डगमग डगमग चलते बढ़ते बड़ा उधम मचाती है ...

पहुँच जाती है रसोईघर में वो माँ का हाथ बंटाती है ...
उसकी पहुँच के सारे बर्तन राशन निकाल निकाल ले आती है ...

जब मैं घर आ जाता हूँ तो पकडो पकडो की रट लगाती है ...
पकङम पकड़ाई खेल खेल के फ़िर वो थोड़ा थक जाती है...

पहुँच जाती है सीधा अब वो कंप्युटर खुलवाती है ...
बब्बा से बात करनी है अब अपने अंदाज़ में बताती है ...

अपने आंसू पुन्छ्वाने के लिए दादा दादी को रिझाती है ...
उन्ही बब्बा को अम्मम्म को ये अपनी यादों से रुलाती है ...

भोली है प्यारी है सबकी आंखों का तारा बन जाती है...
अब वो अपने मुख से दिन भर की कथा भी सुनाती है ...

करके दिनभर भाग दौड़ वो रात तक थक जाती है ...
कभी मम्मा और कभी पप्पा के गले लग के मेरी बिटिया सो जाती है ...

  • अंकित।