रचना के ब्लोग पर मैंने उनकी रचना "तुम्हारे अस्तित्व की जननी हूँ मै" पढी । अच्छी भावपूर्ण कविता है । पढ़ के मैंने उनके ब्लोग पर टिप्पणी में कविता कि प्रशंसा करते हुए एक कविता में ही जवाब भी हाजिर किया जो नीचे लिखा है । किसी कारण से प्रशंसा टिप्पणी में दिखाई दी लेकिन जवाब नदारद तो मैंने सोचा शायद सही भी है । जब जवाब मेरी सोच की उपज है तो मेरे "ख्वाब और सोच" में ही क्यों न दिखे । :)
हाँ अफ़सोस रहेगा कि ये कार्यक्रम आगे नही बढ़ सका ...
पूछना है मुझे की क्या मेरे अस्तित्व को जन्माने वाली ....
सोचा है अस्तित्व अकेले तेरा भी नही था जब तक नही तुने मुझे जन्मा ....
तू मां भी मेरी है ,
मेरी ही है बहिन तू,
मेरे जीवन की तू ही सन्गिनी है पर फ़िर भी मेरी है,
मेरी पुत्री है और मेरी खुशी भी ,
जब तू पूरी मेरी है,
हर रूप में मेरी है,
फ़िर क्युं सोचुं तुझ्से बराबरी की,
बस तु मेरी है हां मेरी है....
मेरे अस्तित्व की जननी तेरे अस्तित्व का कारण मै हुं ...
हम साथी हैं जन्म जन्मान्तर के ...
रचनाकर ने इस ब्रह्मान्ड के हम दोनो को बनाया है....
न तू मुझ्से बढ्कर है न मै तुझ्से बढ्कर हुं ....
-अंकित.