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ज़िन्दगी

आश्वासन

आश्वासन

भीतर मन के क्या है बोल दिया तो,
द्वार वो अपने डर का खोल दिया तो,

सर फिर ऊपर बोलो रख पाओगे कैसे,
जमाने को दबाने से रोक पाओगे कैसे।

निराकार डर को शब्दों से आकार मत दो,
करते रहो श्रम और स्वाभिमान को बल दो।

रहता नहीं वक्त कभी एक जैसा ये जान लो अब,
रहो आश्वस्त, भले का भला सदा ही करेगा रब।

अंकित।

अनकहा साथ

अनकहा साथ

यह जीवन
अनगिनत रंगों जैसा है
केवल इसलिए
कि तुम इस सफर में
मेरे साथ चल रही हो...

मैने अपने दिन
सही राह पर बिताए हैं

क्योंकि तुम मेरी वो धूप हो
जो मेरा हर अंधकार हर देती है...
क्योंकि तुम मेरी वो सोच हो
जो मेरे ज्ञान को बल देती है...

और रातें?
बिना चिंता के नींद आ जाती है
क्योंकि तुम्हारे साथ साथी

सारे कठिन निर्णयों का
सहज संतुलित चिंतन
हो जाता है...

तुमसे हुई सभी
छोटी बड़ी बातों से
मुश्किल से मुश्किल काम
आसान बन जाता है...

यह जीवन
अनगिनत रंगों जैसा है
केवल इसलिए
कि तुम इस सफर में
मेरे साथ चल रही हो...

अंकित।

मैं

मैं

अपना अक्स जिसमे दिखे वो आइना बना दिया
हालात ने मुझको इतना कमीना बना दिया

पत्थर को जो तोड़े वो लोहा बना दिया
वक़्त की तपिश ने मुझे हथौड़ा बना दिया

चीर दे जो अँधेरे को वो जुगनू बना दिया
खुदा ने दिखने में मामूली एक कीड़ा बना दिया

सभी को जो चुभ जाए वो काँटा बना दिया
कुदरत ने मुझे गुलाब का पहरेदार बना दिया

बहुत सोचा बड़ा पूछा तो किसी ने जता दिया
बना के चाँद उनको मुझे चाँद का दाग बना दिया

-अंकित.

गद्दार

गद्दार

जिंदगी का खेल खेलने में नहीं,
फर्क इसमें है की खिलाड़ी क्या सोचते हैं

मैं सिर्फ जीत सोचता हूँ और बाकी,
मेरी हार के पल में अपनी ख़ुशी खोजते हैं

मुझे हरा सके अब ऐसे दुश्मन कहाँ दिखते हैं,
हुई यदि हार तो कारण सदा द्रोही ही बनते हैं

खंज़र उनके हाथों सने खून में हर बार दिखते है,
जो बुला कर दोस्त पीछे पीठ पर वार करते हैं

किस्मत अच्छी है मेरी के मेरे दोस्त कम बनते हैं,
लेकिन जो बनते है वो कभी भी गद्दार नहीं निकलते हैं

-अंकित.

याद

याद

जीवन के महाभारत में,
मैं अर्जुन तो याद सारथी है।

मेरा वर्तमान मेरी यादों से सुधरता है,
फिर भी उसका दामन छोड़ना तो पड़ता है।

नयी यादें बनाने के लिए
हर क्षण जीना पड़ता ही है।

-अंकित.

खुशनुमा ज़िन्दगी

खुशनुमा ज़िन्दगी

बहुत खुशनुमा ज़िन्दगी हुआ करती थी,
कभी ग्यारह कभी बारह बजे नींद खुला करती थी

जब मेरी ज़िन्दगी में तुम आ गयीं,
मेरी रातों की नीद उड़ा गयीं

फिर भी बहुत खुशनुमा ज़िन्दगी हुआ करती थी,
के ख्वाब बिना नींद के आँखें देख लिया करती थीं

उस दिन जब हमारी शादी के लिए तेरी माँ हो गयी राजी,
तेरे बाप ने की खिट-पिट पर मेरे बाप ने मार ली बाज़ी

सर पे पहने सेहरा हो घोडी पर सवार आ गया घर तेरे,
सास ससुर ने रोते हुए किया कन्यादान पड़ गए फेरे

नयी ज़िन्दगी साथ गुजारने के हुए दृड़ जब इरादे,
पंडित ने संस्कृत में करवा दिए अनेक अज्ञात वादे

बहुत रोमांचक मोड़ पे ज़िन्दगी दिखा करती थी,
कभी सात कभी आठ बजे नींद खुला करती थी

बीते कुछ साल तो प्यारी हमारी बिटिया ज़िन्दगी में आ गयी,
इस बार मेरी रातों की नींद उसकी अंखियों में समां गयी

उसके नखरों और अदाओं में वक़्त गुज़र जाता,
कभी हंसती तो मैं हँसता वो रोती तो झुंझला जाता

अब उसकी जीवनी लिखने का ज़िम्मा मिल गया है,
कोई कुछ भी बोले काम कठिन ये भी बड़ा है

मेरे हर जवाब पे सौ नए सवाल खड़े करती है,
आजकल मेरे माथे की नस साफ़ दिखा करती है

उसको स्कूल पहुंचाने की हर सुबह रहती जल्दी है,
कभी पांच कभी छः बजे नींद खुला करती है

फिर भी खुशनुमा ज़िन्दगी बहुत लगती है...
फिर भी खुशनुमा ज़िन्दगी बहुत लगती है...

-अंकित

आवाज़ !!!

आवाज़

बहुत उदास हूँ, बड़ा हताश हूँ
आज मेरे दोस्त
ज़िन्दगी बेबुनियाद लगती है,
आज मेरे दोस्त

हिम्मत की कमी लगती है,
मन विचलित और घुटन लगती है
आज मेरे दोस्त

ज़िन्दगी बड़ी नीरस लगती है
आज मेरे दोस्त

हर सोच हारी हुई और
हर सांस भारी सी लगती है
आज मेरे दोस्त

मरने के सौ बहाने दीखते हैं
पर जीने की एक ख्वाहिश नहीं दिखती
आज मेरे दोस्त

काली रात की सुबह नहीं दिखेगी,
अँधेरी गुफा है और रौशनी नहीं मिलेगी
क्यूँ ऐसा लगता है
तुझसे आखरी एक मुलाक़ात
न हो सकेगी मेरे दोस्त

ख़ुशी तो भूल चुका हूँ
लेकिन हार अभी स्वीकार नहीं
मुझे संभाल ले तू आ कर
या कह दे मेरी दरकार नहीं तुझे
आज मेरे दोस्त...

-अंकित.

जीवन कथा

जीवन कथा

कभी जन्नत कभी दोज़क,
कभी धूमिल कभी रौनक,
जिंदगी चलती जाती है,
कहानी लिखती जाती है
चलो कुछ याद रखते हैं,
और कुछ भूल जाते हैं

कहानी मेरे जीवन की
और जिक्र हो सिर्फ जन्नत का
कहानी मेरे जीवन की
और जिक्र हो सिर्फ रौनक का

मेरे दोज़क से वो पल,
मेरे जीवन के धूमिल क्षण,
कभी ना याद रखना तुम,
मेरी खुशियो को संग रखना,
गमो को भूल जाना तुम ...

-अंकित

जीवन का मोड़ ...

जीवन का मोड़

ज़िन्दगी की राह बदलती लगती पलपल है
जीवन के इस मोड़ पर मिला एक घना जंगल है

ओह! मन के मन्दिर में सीमित जब संदल है
चाह की उड़ान लगती बहुत चंचल है

मन में मेरे होने लगी एक अजीब हलचल है
आज फिर मेरी विचारधारा में कलकल है

ज़िन्दगी की राह बदलती लगती पलपल है
जीवन के इस मोड़ पर मिला एक घना जंगल है

-अंकित

जीवन-पड़ाव

जीवन-पड़ाव

क्यूँ मन की वीणा बचपन की वो एक धुन बजाने लगी है,
उमड़ आयीं यादें बेहिसाब और गणित गडबडाने लगी है .

क्यूँ मेरी तन्हाई मेरे धीर को आजमाने लगी है,
नीर का अभाव है और आँख डबडबाने लगी है.

क्यूँ तीव्र वेदना भी अब सुहाने लगी है,
अमावस की रात है और दीप - ज्योति टिमटिमाने लगी है.

क्यूँ बिन पिए मेरी चाल डगमगाने लगी है,
आखरी जीवन-पड़ाव है और मंजिल बस दूर से झिलमिलाने लगी है.

-अंकित