दार्शनिक¶
वादा
वादा
अक्सर सोचता हूं, कभी नहीं बोलता हूं
यादों में ईद दीवाली सभी मेरे त्योहार है
यादों का आइना यूं टूट जाता है मेरा
कि आज धर्म का ठेकेदार बताता है
कौनसा सा त्योहार मनाना है मुझे
सभी रिश्तों के मायने होना ज़रूरी तो नहीं
लेकिन बिना मायने के रिश्ते निभाना शायद मुमकिन तो नहीं
हर दोस्ती की अपनी गहराई होती है
लेकिन उस गहराई का नाप हो पाना शायद मुमकिन तो नहीं
नफरतों के बाज़ार में भाषा से रंग तक सब बिकता है
लेकिन धर्म से सस्ता और टिकाऊ शायद कोई हथियार तो नहीं
चलो आज मिल कर ये वादा कर लें
हमारे घरों में रोशनी हर त्योहार पर होगी
ना धर्म की बंदिश होगी ना भाषा की सीमा होगी
ना घृणा के लिए हमारे दिलों में जगह होगी
हां प्रेम और आदर की असीमित आपूर्ति होगी
-अंकित.
जड़
जड़
सिखा सकता है कौन पौधे को, क्या करना है कब किसको,
तू जड़ को जड़ ही रहने दे, उसको व्यर्थ ही चेतन ना कर।
जो लगे फल तो कभी गुमां ना कर,
फलों को गिन उनका विश्लेषण ना कर।
बदलती ऋतु में गिरते पत्तों का शोक ना कर,
संभाल वो जो हरे हैं, उनको भी रोक मत पर।
मोल रचेयता का चुकाना बन के मिट्टी, उनकी किस्मत है,
माली तू सींचते रह और सृष्टि पे विश्वास तो कर।
गर जड़ में जादू है तो हरियाली फिर से आएगी,
लेकिन जो सड़ चुकी हो जड़ तो मिट्टी कुछ कर ना पाएगी।
कर उसका त्याग नए पौधे को तू दे अब घर,
है तू माली और ये तेरी कर्मभूमि है,
जड़ को जड़ ही रहने दे, उसको व्यर्थ ही चेतन ना कर।
-अंकित.
खूबसूरत बला
खूबसूरत बला
मेरे माता पिता ने मुझे सदा ही ये सिखाया है
किसी लड़की का ना हो अपमान चाहे जान गंवानी पड़े
रहे कोशिश की घर की लक्ष्मी को कोई दुख ना हो
फिर रोटी सूखी चाहे खुद को क्यूं ना खानी पड़े
हूं ऐसे परिवार से, जहां फर्क नहीं है बहुओं से,
जहां लड़की जन्मी है दुआओं से तो ऐसे विचार फिर में रखता हूं,
औरत को समाधिकार समझता हूं
मज़ाक अपनी जगह सही है लेकिन,
अबला को बला नहीं समझता हूं
ना बुलाओ अबला को खूबसूरत बला,
किसी की बेटी किसी की मां है वो
जो कर दिया तुम्हे पाल के काबिल इतना
किसी औरत की मेहनत उसी की कला है वो
डूब जाते जिंदगी के तूफानों में हम
किसी देवी की दुआ है जो टला है वो
ना बुलाओ अबला को खूबसूरत बला,
किसी की बेटी किसी की मां है वो
-अंकित.
मतिभ्रम
मतिभ्रम
नहीं मिलेगा सूकूं कभी जिंदगानी में, ये हकीकत तो जानता हूं मैं;
"क्या बनेगी बात मौत से रूबरू हो कर?" बस इसी सवाल से हर पल जूझता हूं मैं।
किसी से पूछ तो लेता मगर डर सभी से लगता है;
है किस से कौन सा रिश्ता, सोचना बेमाने सा लगता है;
जरा सोचो जरा समझो तो खून का रिश्ता तो बस कातिल से बनता है।
कभी ना किसी को जो सुनाई दे, वो सुनता रहता हूं मैं,
खुशहाल चहकती वादी में भी सिसकियां सुनता रहता हूं मैं।
सुबह के सूरज कि किरणों में अग्नि क्यूं कर मुझे ही दिखती है,
चमन भरा है फूलों से फिर कांटे क्यूं कर मुझे ही दिखते हैं,
रात के अंधियारे में क्यूं इंसानियत घुट घुट मरती मुझे ही दिखती है।
नहीं बूझता मुझे कुछ अब फिर भी सोचता रहता हूं मैं,
नहीं दिखता जो किसी को उस युद्ध की रणनीति बुनता रहता हूं मैं।
नहीं मिलेगा सूकूं कभी जिंदगानी में, ये हकीकत तो जानता हूं मैं;
"क्या बनेगी बात मौत से रूबरू हो कर?" बस इसी सवाल से हर पल जूझता हूं मैं।
-अंकित.
सवाल
सवाल
खफा नहीं हूँ मैं,
बस कुछ सवाल मन में हैं।
क्यूँ है ऐसा की रंग की दीवार हर जन में है?
धर्म की दरार क्यूँ जब परवरदिगार सब में है?
नफरत का जहर क्यूँ जब प्रीत का अमृत हर दिल में है?
क्यूँ प्रेमियों के जनाजे और दहशतगर्दों की बरात दर पर है?
जानवर का इंसान से ज्यादा समझदार लगना, क्यूँ कर है?
बुद्धिजीवी ही इस दुनिया में लाचार और बीमार क्यूँ कर है?
धर्म विद्वान् कहते हैं खुदा के घर में देर है अंधेर नहीं है,
तो फिर अत्याचार बेहिसाब, नहीं कोई विराम, क्यों कर है?
खफा नहीं हूँ मैं,
बस कुछ सवाल मन में हैं।
-अंकित.
रांझा
रांझा
जो आगे अपने किसी को कुछ न समझते थे कभी,
कसमों और रस्मों को उनको भी फिर निभाना तो पड़ा।
चुरा कर ले गए मेरा दिल जो थे कभी,
मिलने के लिए वक़्त उनसे फिर चुराना ही पड़ा।
जो कारवां से छूट कर पीछे रह गए थे कभी,
पूरा जीवन टूट कर अकेले उनको फिर बिताना ही पड़ा।
इमारतें और बंगले जो रेत से ढह गए थे कभी,
कर के मेहनत दिन रात उनको फिर बनाना ही पड़ा।
प्यार घायल परिंदे से हुआ हो कितना भी,
उसकी आज़ादी की खातिर उसे फिर उड़ाना तो पड़ा।
छुड़ा के सबसे दामन जो चले गए थे कभी,
दामन से उनकी यादों को फिर छुड़ाना ही पड़ा।
हर रोज़ की दौड़ में जो रुक गयी थीं कभी,
उन थमी हुई चाहतों को फिर चलाना तो पड़ा।
हुआ हो दर्द अपनों की बेवफाई से कितना भी,
गिले शिकवों को फिर भी मिटाना तो पड़ा।
हर नए पड़ाव पे जो बुन लिए थे कभी,
उन उमंगित सपनों को फिर सुलाना तो पड़ा।
मिटे हों रांझे पहले दुनिया में भले ही कितने भी,
इश्क़ में दीवानों को घर खुदा के फिर जाना ही पड़ा।
मेरे गीत की गहराई में जो खो जाते थे कभी,
आखिर खुदा को मुझे उनसे फिर मिलवाना ही पड़ा।
-अंकित.
सीख
सीख
वो रिश्ते ही क्या जो किसी चीज़ के मोहताज़ हो जाएं
मशरूफ हम इतने भी नहीं की गिले शिकवे राज़ हो जाएं
कितना किसे मिलेगा इस धरती पर न इसका नाज़ हो जाए
करोगे क्या तुम उस नैमत से जरा इसकी भी लाज हो जाए
है सीख मेरे निर्माता की जो करे कर्म वो जांबाज़ हो जाये
है जुनूँ वो जांबाज़ होने का,तो या वो सच आज हो जाये
या फिर ऍ ख़ुदा मेरा भी कुछ इलाज़ हो जाये
-अंकित.
कारण !!!
कारण
बड़ा मौन बैठा था ,सभी आसान दिखता था,
की नहीं सोचता जब कुछ तो लिखता नहीं हूँ मैं।
मुझे सोचने पर कर दिया मजबूर दुनिया ने,
अब लिख रहा हूँ, नहीं रुक पा रहा हूँ मैं।
आज मेरे अन्दर का कवी जागा हुआ है,
सारे ज़माने का खौफ़ मुझसे भागा हुआ है।
बसेरा मेरा कुछ इस तरह जगमगाया हुआ है,
हर शख्स मेरे मोहल्ले का शरमाया हुआ है।
चंदा आसमान में यूँ छाया हुआ है,
हर तारा अपने वजूद पर चकराया हुआ है।
अक्सर मैं छुपता हूँ जिस ज़माने से,
आज ज़माना वही मुझसे घबराया हुआ है।
-अंकित.
जीवन कथा
जीवन कथा
कभी जन्नत कभी दोज़क,
कभी धूमिल कभी रौनक,
जिंदगी चलती जाती है,
कहानी लिखती जाती है
चलो कुछ याद रखते हैं,
और कुछ भूल जाते हैं
कहानी मेरे जीवन की
और जिक्र हो सिर्फ जन्नत का
कहानी मेरे जीवन की
और जिक्र हो सिर्फ रौनक का
मेरे दोज़क से वो पल,
मेरे जीवन के धूमिल क्षण,
कभी ना याद रखना तुम,
मेरी खुशियो को संग रखना,
गमो को भूल जाना तुम ...
-अंकित