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दार्शनिक

जीवन कथा

जीवन कथा

कभी जन्नत कभी दोज़क,
कभी धूमिल कभी रौनक,
जिंदगी चलती जाती है,
कहानी लिखती जाती है
चलो कुछ याद रखते हैं,
और कुछ भूल जाते हैं

कहानी मेरे जीवन की
और जिक्र हो सिर्फ जन्नत का
कहानी मेरे जीवन की
और जिक्र हो सिर्फ रौनक का

मेरे दोज़क से वो पल,
मेरे जीवन के धूमिल क्षण,
कभी ना याद रखना तुम,
मेरी खुशियो को संग रखना,
गमो को भूल जाना तुम ...

-अंकित

मदद !!!

मदद

किसी के दिल का दर्द जब तुझे छु जाए ..
किसी की तकलीफ से आँख जब तेरी भर आये ..

जटिल उसकी समस्या हो, ना तू हाथ अपना बढ़ा पाए ..
ना होना शर्मिंदा तू के हौसला अपनो से मिलता है ..

बाँट लेना उसका ग़म उसे शायद सुकून मिल जाए ..
दुआ करना खुदा से वो अपनी मदद आप कर पाए ..

-अंकित

आदर्श !!!

आदर्श

मैं अपने ईमान को कभी बिकने नहीं देता
खुद को अपनी नज़रों मैं कभी गिरने नहीं देता

इसलिए खुदा मेरी गैरत को कभी झुकने नहीं देता
मेरे जन्मदाता के इस आदर्श को मैं मिटने नहीं देता

अंकित.

पूछ लो काजी से...

पूछ लो काजी से

क्यूँ कहते है खेल नहीं दिल का लगाना बोलो,
दिल तो दीवाना है, क्या इसका ठिकाना बोलो ....
भूलना होगा हर तरीका पुराना हमको,
ढूंढना होगा नया कोई बहाना हमको ....

दुश्मन के सौ वार एक जुदाई से भले होते हैं,
दिल पे निशाना होता है पर टुकड़े तो नहीं होते हैं ....
कोई जा के सुनाये हमारा अफसाना उनको,
बहुत मुश्किल है इस दिल का धडकाना अब तो .....

चले आते हैं बेबाक हमारे ख्यालों में वो,
बीता ज़माना देखे हमारी सूरत की हकीकत जिनको ....
क्या बना सबब आपके जाने का हमें याद नहीं,
हाँ मगर याद है वो आपका आना हमको ....

क्या गुस्ताख थी निगाहें हमको ये याद नहीं,
क्यूँ आपको लगती ज्यादा सजा की ये मियाद नहीं ....
हुआ गायब हमारा हर ख्वाब वो सुहाना ऐसे,
जहन्नुम बन गया हो हमारा ठिकाना जैसे ....

क्या जुबान ने खता की थी इसका तो अहसास नहीं,
लगा आपके जाने के बाद, के पास हमारे सांस नहीं ....
कल आती है आज आ जाए मौत के अब डरना कैसा,
घुट घुट के हम वैसे भी हर रोज मरा करते हैं ....

बुझ रहा है हमारी हस्ती का फ़साना यूँ तो,
सीखना फिर भी होगा साथ का निभाना हमको ....
के इन हाथ की लकीरों में बस वो ही वो दीखते हैं,
पूछ लो काजी से मुक़द्दर तो नहीं बिकते हैं ....

-अंकित

कसूर

कसूर

शाम फुर्सत की मिल जाए, दुआ हर इबादत में ये माँगी
पायी फुरक़त, कोई हमको समझाए, है मेरा कसूर कहाँ ?

हरेक रात चांदनी आये, दुआ हर इबादत में ये माँगी
चाँद के साथ बादल भी आये, है मेरा कसूर कहाँ ?

खुशनुमा हर सवेरा हो पाए, दुआ हर इबादत में ये माँगी
खबरनामा खून से रंगा नज़र आये, है मेरा कसूर कहाँ ?

-अंकित

नहीं मिलता !!!

नहीं मिलता

मिला पंडित मिला काजी
लेकिन बस खुदा मुझको नहीं मिलता ...

जो मिल जाए तो मैं पूछूँ तेरी रचना में ढूंढो तो
सिवा इंसानों के कभी कुछ भी गलत क्यूँ कर नहीं मिलता ...

क्यूँ तू अपने ही बन्दों से अपने ही बन्दों का अहित कराता है
बहुत ढूंढता हूँ मैं इसका कोई कारण नहीं मिलता ...

मिला फूल और मिला मुझे मैल गंगा में
जो ढूँढ़ते हैं सब वो जल अमृत नहीं मिलता ...

मिले हज यात्री और तीर्थ यात्री मुझको
लेकिन जो जाने तेरी चाहत को

जो माने तेरी हुकूमत को
कोई ऐसा पथिक नहीं मिलता ...

तेरी धरती को सभी से दर्द और तिरस्कार मिलता है
इस सुन्दर निर्माण को तेरे क्यूँ कभी आभार नहीं मिलता ...

अगर ढूंढो बहुत खोजो तो शायद रब भी मिलता है,
नहीं मिलता तो बस उसका बनाया हुआ
एक सच्चा इन्सान नहीं मिलता ...

-अंकित.

जीवन शक्ति

जीवन शक्ति

है अभिलाषा की आसमान में उड़ पाऊँ,
है अभिलाषा की सितारों को छू पाऊँ.

बस जिंदगी कभी पर बढ़ने नहीं देती,
कभी वो एक अंतिम जरूरी स्पर्श होने नहीं देती.

शिकायत तुझसे नहीं फिर भी जिंदगी, क्यूँ कि ...
हर सुबह मेरी चाहत मेरे प्यार को,
मेरे सुन्दर सुखी संसार को,
नज़रों से ओझल तू होने नहीं देती.

इस उपलब्धि के सामने छोटी मेरी हर अभिलाषा है,
तेरी देन मेरी हर निराशा में जैसे भरती आशा है.

कोशिश करना मेरा स्वभाव बना जाता है,
इस अग्नि को करती है जो प्रज्वल्लित,
उस अद्भुत अज्ञात जीवन शक्ति के सामने,
ये शीश झुका जाता है.

-अंकित

पैसा और ईमान

पैसा और ईमान

किताबों में पढ़ा है जिसके पास ईमान नहीं वो इंसान नहीं,
जीवन भर देखा और सुना है बिन पैसे, रुतबा और शान नहीं.

है गरीब कौन जिसके पास पैसा नहीं या जिसके पास ईमान नहीं ?

ईमान को पैसा खरीद लेता है तो क्या पैसा भगवान् नहीं ?
है अगर पैसा भगवान् तो क्या पैसे वाला ज्यादा बलवान नहीं ?

गरीब का हर पल होते शोषण देखा है, यकीनन गरीब बलवान नहीं.
जिसके पास ना पैसा हो ना ईमान क्या उसको बुलाता रंक हर इंसान नहीं ?

रंक ना बलवान है ना उसकी अपनी कोई पहचान है क्या सच में वो इंसान नहीं ?
सोचा क्या फ़कीर और रंक इस परिभाषा से सामान नहीं ?

या फ़कीर के पास वो ईमान है जिसका कोई खरीदार नहीं ?
फिर फ़कीर गरीब हो या ना हो रंक का किरदार नहीं .

एक पहलु और है देखो, सुना है पैसे का कोई ईमान नहीं
अगर ऐसा है तो पैसा बिना ईमान के भगवान् नहीं

पैसा ईमान खरीद सकता है लेकिन हर ईमान सामान नहीं
क्या जो ईमान बना दे पैसे को भगवान् वो कभी बिकाऊ नहीं ?

तो क्या फ़कीर के ईमान का खरीददार तो है लेकिन वो बस बिकाऊ नहीं ?
तो क्या हर वो ईमान जो बिका नहीं बस एक चमत्कार नहीं ?

मानो ये सच है तो क्या फिर ईमान पैसे से बड़ा पुरस्कार नहीं ?
बहुत कठिन हैं ये सारे सवाल , दुनिया का चलन समझ पाना आसान नहीं.

-अंकित

नया जहाँ !!!

नया जहाँ

क्यूँ  आज  हर  मोड़  पैर  छाए  इतने  हैं  वीराने 
क्यूँ  ख्वाब  बनते  जा  रहे  हैं  फ़साने 
क्यूँ  हर  मोड़  पे  जलते  दिखे  हैं  आशियाने 
क्यूँ  अपने  भी  दिखाई  पड़ते  हैं  बेगाने 

कौन  सी  दुनिया  है  वो  जहाँ  खुले  हैं  मौत  के  वो  कारखाने 
कौन  हैं  ये  लोग  जो  रखते  हैं  हर  इंसान  को  अपने  निशाने 
कौन  से  खौफ  के  हाथों  रखे  हैं  गिरवी  ख़ुशी  के  वो  खजाने 
कौन  हैं  वो  जिसने  मेरी  ज़मीन  में  किये  इतने  बेगुनाह  दफ़न  न  जाने 

कर  दो  ख़तम  दहशतगर्दी  का  ये  दौर  के  अब  बुलाने  हैं  हसीं  वो  ज़माने 
कर  लो   बहाल  इंसानियत  का  वो  तौर  अब  बढा  लो  कदम  मिलने  मिलाने 
कर  दो  सारी  ख़तम   वो  रंजिशें  के  अब  हो  शुरू  सब  शिकवे  भूलने  भुलाने 
कर  लो  वादा  भूलने  हैं  वो  बहाने  के  अब  हम  चले  हैं  नया  जहाँ  बनाने 

-अंकित.