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दार्शनिक

मदद !!!

मदद

किसी के दिल का दर्द जब तुझे छु जाए ..
किसी की तकलीफ से आँख जब तेरी भर आये ..

जटिल उसकी समस्या हो, ना तू हाथ अपना बढ़ा पाए ..
ना होना शर्मिंदा तू के हौसला अपनो से मिलता है ..

बाँट लेना उसका ग़म उसे शायद सुकून मिल जाए ..
दुआ करना खुदा से वो अपनी मदद आप कर पाए ..

-अंकित

आदर्श !!!

आदर्श

मैं अपने ईमान को कभी बिकने नहीं देता
खुद को अपनी नज़रों मैं कभी गिरने नहीं देता

इसलिए खुदा मेरी गैरत को कभी झुकने नहीं देता
मेरे जन्मदाता के इस आदर्श को मैं मिटने नहीं देता

अंकित.

पूछ लो काजी से...

पूछ लो काजी से

क्यूँ कहते है खेल नहीं दिल का लगाना बोलो,
दिल तो दीवाना है, क्या इसका ठिकाना बोलो ....
भूलना होगा हर तरीका पुराना हमको,
ढूंढना होगा नया कोई बहाना हमको ....

दुश्मन के सौ वार एक जुदाई से भले होते हैं,
दिल पे निशाना होता है पर टुकड़े तो नहीं होते हैं ....
कोई जा के सुनाये हमारा अफसाना उनको,
बहुत मुश्किल है इस दिल का धडकाना अब तो .....

चले आते हैं बेबाक हमारे ख्यालों में वो,
बीता ज़माना देखे हमारी सूरत की हकीकत जिनको ....
क्या बना सबब आपके जाने का हमें याद नहीं,
हाँ मगर याद है वो आपका आना हमको ....

क्या गुस्ताख थी निगाहें हमको ये याद नहीं,
क्यूँ आपको लगती ज्यादा सजा की ये मियाद नहीं ....
हुआ गायब हमारा हर ख्वाब वो सुहाना ऐसे,
जहन्नुम बन गया हो हमारा ठिकाना जैसे ....

क्या जुबान ने खता की थी इसका तो अहसास नहीं,
लगा आपके जाने के बाद, के पास हमारे सांस नहीं ....
कल आती है आज आ जाए मौत के अब डरना कैसा,
घुट घुट के हम वैसे भी हर रोज मरा करते हैं ....

बुझ रहा है हमारी हस्ती का फ़साना यूँ तो,
सीखना फिर भी होगा साथ का निभाना हमको ....
के इन हाथ की लकीरों में बस वो ही वो दीखते हैं,
पूछ लो काजी से मुक़द्दर तो नहीं बिकते हैं ....

-अंकित

कसूर

कसूर

शाम फुर्सत की मिल जाए, दुआ हर इबादत में ये माँगी
पायी फुरक़त, कोई हमको समझाए, है मेरा कसूर कहाँ ?

हरेक रात चांदनी आये, दुआ हर इबादत में ये माँगी
चाँद के साथ बादल भी आये, है मेरा कसूर कहाँ ?

खुशनुमा हर सवेरा हो पाए, दुआ हर इबादत में ये माँगी
खबरनामा खून से रंगा नज़र आये, है मेरा कसूर कहाँ ?

-अंकित

नहीं मिलता !!!

नहीं मिलता

मिला पंडित मिला काजी
लेकिन बस खुदा मुझको नहीं मिलता ...

जो मिल जाए तो मैं पूछूँ तेरी रचना में ढूंढो तो
सिवा इंसानों के कभी कुछ भी गलत क्यूँ कर नहीं मिलता ...

क्यूँ तू अपने ही बन्दों से अपने ही बन्दों का अहित कराता है
बहुत ढूंढता हूँ मैं इसका कोई कारण नहीं मिलता ...

मिला फूल और मिला मुझे मैल गंगा में
जो ढूँढ़ते हैं सब वो जल अमृत नहीं मिलता ...

मिले हज यात्री और तीर्थ यात्री मुझको
लेकिन जो जाने तेरी चाहत को

जो माने तेरी हुकूमत को
कोई ऐसा पथिक नहीं मिलता ...

तेरी धरती को सभी से दर्द और तिरस्कार मिलता है
इस सुन्दर निर्माण को तेरे क्यूँ कभी आभार नहीं मिलता ...

अगर ढूंढो बहुत खोजो तो शायद रब भी मिलता है,
नहीं मिलता तो बस उसका बनाया हुआ
एक सच्चा इन्सान नहीं मिलता ...

-अंकित.

जीवन शक्ति

जीवन शक्ति

है अभिलाषा की आसमान में उड़ पाऊँ,
है अभिलाषा की सितारों को छू पाऊँ.

बस जिंदगी कभी पर बढ़ने नहीं देती,
कभी वो एक अंतिम जरूरी स्पर्श होने नहीं देती.

शिकायत तुझसे नहीं फिर भी जिंदगी, क्यूँ कि ...
हर सुबह मेरी चाहत मेरे प्यार को,
मेरे सुन्दर सुखी संसार को,
नज़रों से ओझल तू होने नहीं देती.

इस उपलब्धि के सामने छोटी मेरी हर अभिलाषा है,
तेरी देन मेरी हर निराशा में जैसे भरती आशा है.

कोशिश करना मेरा स्वभाव बना जाता है,
इस अग्नि को करती है जो प्रज्वल्लित,
उस अद्भुत अज्ञात जीवन शक्ति के सामने,
ये शीश झुका जाता है.

-अंकित

पैसा और ईमान

पैसा और ईमान

किताबों में पढ़ा है जिसके पास ईमान नहीं वो इंसान नहीं,
जीवन भर देखा और सुना है बिन पैसे, रुतबा और शान नहीं.

है गरीब कौन जिसके पास पैसा नहीं या जिसके पास ईमान नहीं ?

ईमान को पैसा खरीद लेता है तो क्या पैसा भगवान् नहीं ?
है अगर पैसा भगवान् तो क्या पैसे वाला ज्यादा बलवान नहीं ?

गरीब का हर पल होते शोषण देखा है, यकीनन गरीब बलवान नहीं.
जिसके पास ना पैसा हो ना ईमान क्या उसको बुलाता रंक हर इंसान नहीं ?

रंक ना बलवान है ना उसकी अपनी कोई पहचान है क्या सच में वो इंसान नहीं ?
सोचा क्या फ़कीर और रंक इस परिभाषा से सामान नहीं ?

या फ़कीर के पास वो ईमान है जिसका कोई खरीदार नहीं ?
फिर फ़कीर गरीब हो या ना हो रंक का किरदार नहीं .

एक पहलु और है देखो, सुना है पैसे का कोई ईमान नहीं
अगर ऐसा है तो पैसा बिना ईमान के भगवान् नहीं

पैसा ईमान खरीद सकता है लेकिन हर ईमान सामान नहीं
क्या जो ईमान बना दे पैसे को भगवान् वो कभी बिकाऊ नहीं ?

तो क्या फ़कीर के ईमान का खरीददार तो है लेकिन वो बस बिकाऊ नहीं ?
तो क्या हर वो ईमान जो बिका नहीं बस एक चमत्कार नहीं ?

मानो ये सच है तो क्या फिर ईमान पैसे से बड़ा पुरस्कार नहीं ?
बहुत कठिन हैं ये सारे सवाल , दुनिया का चलन समझ पाना आसान नहीं.

-अंकित

नया जहाँ !!!

नया जहाँ

क्यूँ  आज  हर  मोड़  पैर  छाए  इतने  हैं  वीराने 
क्यूँ  ख्वाब  बनते  जा  रहे  हैं  फ़साने 
क्यूँ  हर  मोड़  पे  जलते  दिखे  हैं  आशियाने 
क्यूँ  अपने  भी  दिखाई  पड़ते  हैं  बेगाने 

कौन  सी  दुनिया  है  वो  जहाँ  खुले  हैं  मौत  के  वो  कारखाने 
कौन  हैं  ये  लोग  जो  रखते  हैं  हर  इंसान  को  अपने  निशाने 
कौन  से  खौफ  के  हाथों  रखे  हैं  गिरवी  ख़ुशी  के  वो  खजाने 
कौन  हैं  वो  जिसने  मेरी  ज़मीन  में  किये  इतने  बेगुनाह  दफ़न  न  जाने 

कर  दो  ख़तम  दहशतगर्दी  का  ये  दौर  के  अब  बुलाने  हैं  हसीं  वो  ज़माने 
कर  लो   बहाल  इंसानियत  का  वो  तौर  अब  बढा  लो  कदम  मिलने  मिलाने 
कर  दो  सारी  ख़तम   वो  रंजिशें  के  अब  हो  शुरू  सब  शिकवे  भूलने  भुलाने 
कर  लो  वादा  भूलने  हैं  वो  बहाने  के  अब  हम  चले  हैं  नया  जहाँ  बनाने 

-अंकित.

आत्मा - Soul

शिव कभी भी गर्भ से जन्म नहीं लेते, इसलिए अपनी भूमिका निभाने के लिए शंकर के शरीर में दिव्य जन्म लेते हैं।

सरल शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि शिव आत्मा हैं और शंकर शरीर हैं, इसीलिए अंतिम पंक्ति में यह बात कही गई है।

आत्मा ऐसी चीज़ है जिस पर सभी विश्वास नहीं करते। यहाँ तक कि ईश्वर में आस्था रखने वाले लोग भी कभी-कभी आत्मा के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं। आत्मा को, ईश्वर की तरह, देखा नहीं जा सकता। इसे केवल महसूस किया जा सकता है। आत्मा परमात्मा तक पहुँचने का मानवीय माध्यम है।

कभी सोचा है कि "आत्मा शुद्ध है" क्यों कहा जाता है?

दरअसल, यह किसी भी धर्म से संबंधित नहीं है, क्योंकि इसे इसकी आवश्यकता भी नहीं। यह स्वयं परमात्मा का ही एक अंश है। यही परमात्मा से जुड़ने की कड़ी है।

जबकि भौतिक स्वरूप अंतिम मंज़िल तक पहुँचने के लिए अलग-अलग रास्ते अपनाता है, आत्मा को किसी मार्गदर्शन की ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि वह स्वयं ही परमात्मा तक पहुँचने की कड़ी है।

आत्मा

मैं प्रश्न नहीं मैं उत्तर हूँ
मैं बाहर नहीं मैं भीतर हूँ

मैं दर्द नहीं मैं राहत हूँ
मैं धोखा नहीं मैं चाहत हूँ

मैं भिक्षा नहीं मैं दीक्षा हूँ
मैं अज्ञान नहीं मैं शिक्षा हूँ

मैं काया नहीं मैं साया हूँ
मैं जाल नहीं पर माया हूँ

मैं चोर नहीं मैं सिपाही हूँ
मेरी राह नहीं पर राही हूँ

मेरी कोई आवाज़ नहीं पर मैं हलकी एक आहट हूँ
मेरी कोई गति नहीं पर हलकी एक सरसराहट हूँ

मैं करता नहीं मैं रक्षक हूँ
मैं प्रभु नहीं मैं सेवक हूँ

मैं दृश्य नहीं मैं दृष्टि हूँ
मैं शंकर नहीं मैं शिव शक्ति हूँ

-अंकित.

Shiva is never born through the womb so takes a divine birth in the body of Shankar to play his part.

In simple words, what this means is that Shiva is soul and Shankar is body and hence the last line.

Soul is something not all believe in, even those who have faith in GOD at times question the existence of Soul. Soul like GOD can not be seen. It can just be felt. Soul is the human medium to reach almighty.

Ever thought why they say SOUL is pure. Well it really does not belong to any religion, as it need not as it is just another part of LORD. This is the link to almighty. While the physical self tries to follow different routes to reach the final destination, SOUL does not need the road map as it is itself the link.

Below is how I see SOUL.

Soul

I am not the PROBLEM, I am the SOLUTION
I am not OUT, I am INSIDE you

I am not PAIN, I am RELIEF
I am not DECEIT, I am LOVE

I am not DONATION, I am AQUIRED KNOWLEDGE,
I am not ILLITERACY, I am EDUCATION

I am not SKIN , I am SHADOW
I am not a TRAP but MYSTERY I am

I am not a THIEF, I am the GUARD
I do not have a PATH but I am a TRAVELLER

I do not have a SOUND but I am myself a FAINT VOICE
I do not have a SPEED but I am a FAINT MOVEMENT myself.

I am not THE CREATOR, I am the SAVIOUR
I am not LORD, I am the HELPER

I am not a SCENE, I am EYESIGHT
I am not the BODY, I am SOUL

-Ankit.