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पैसा और ईमान

पैसा और ईमान

किताबों में पढ़ा है जिसके पास ईमान नहीं वो इंसान नहीं,
जीवन भर देखा और सुना है बिन पैसे, रुतबा और शान नहीं.

है गरीब कौन जिसके पास पैसा नहीं या जिसके पास ईमान नहीं ?

ईमान को पैसा खरीद लेता है तो क्या पैसा भगवान् नहीं ?
है अगर पैसा भगवान् तो क्या पैसे वाला ज्यादा बलवान नहीं ?

गरीब का हर पल होते शोषण देखा है, यकीनन गरीब बलवान नहीं.
जिसके पास ना पैसा हो ना ईमान क्या उसको बुलाता रंक हर इंसान नहीं ?

रंक ना बलवान है ना उसकी अपनी कोई पहचान है क्या सच में वो इंसान नहीं ?
सोचा क्या फ़कीर और रंक इस परिभाषा से सामान नहीं ?

या फ़कीर के पास वो ईमान है जिसका कोई खरीदार नहीं ?
फिर फ़कीर गरीब हो या ना हो रंक का किरदार नहीं .

एक पहलु और है देखो, सुना है पैसे का कोई ईमान नहीं
अगर ऐसा है तो पैसा बिना ईमान के भगवान् नहीं

पैसा ईमान खरीद सकता है लेकिन हर ईमान सामान नहीं
क्या जो ईमान बना दे पैसे को भगवान् वो कभी बिकाऊ नहीं ?

तो क्या फ़कीर के ईमान का खरीददार तो है लेकिन वो बस बिकाऊ नहीं ?
तो क्या हर वो ईमान जो बिका नहीं बस एक चमत्कार नहीं ?

मानो ये सच है तो क्या फिर ईमान पैसे से बड़ा पुरस्कार नहीं ?
बहुत कठिन हैं ये सारे सवाल , दुनिया का चलन समझ पाना आसान नहीं.

-अंकित

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