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2007

किसलिए...

किसलिए

फिर दर्द को मेरी याद आयी क्यों कर,
ये डोर टूटी हुई फिर जुड़ने आयी किसलिए ???

फिर क़दमों में मेरे आवारगी आयी क्यों कर,
ये बीते हुए लम्हों में रवानगी आयी किसलिए ???

फिर दीवाने दिल में बेचारगी छाई क्यों कर,
ये कुल्मुलाहते अहसास और वोही दीवानगी छाई किसलिए ???

फिर खो जाने कि बेताब सी एक चाहत अपनाई क्यों कर,
ये ख्वाहिश कि दर्द-ए-दिल पायेगा राहत अपनाई किसलिए ???

-अंकित

लेकिन !!!

लेकिन

भूल जाना तुझे मुमकिन तो नहीं,
लेकिन नामुमकिन को हकीकत करना तेरे लिए नयी अदा भी तो नही!!!

हो बहुत दूर लेकिन इस दिल से जुदा तो नही,
लेकिन फिर मैं कोई खुदा भी तो नही!!

तुझ से रूठना मेरी आदत तो नही,
लेकिन इसके सिवा मेरे पास कोई ताक़त भी तो नही !!!

उन साथ गुजारे लम्हों कि पास मेरे कोई निशानी तो नही,
लेकिन तेरे साथ कि आस बेमानी तो नही !!!

मेरी दोस्ती पुकारती है पर तू आता ही नही,
लेकिन क्या करूं इस दिल का जो और कुछ माँगता ही नहीं !!

ऐ मेरे दोस्त तेरी याद से आंखें भर आई,
लेकिन आंख के पानी से यादें धुन्धलायीं तो नहीं !!!

-अंकित

चाय !!!

मेरा ममेरा भाई जो "प्रथम" नामक एक NGO में काम करता है, उसने कुछ दिन पहले अपने ऑफिस में ग्रामीण बालकों के लिए शुरू हुए एक कार्यक्रम के बारे में बताया। वे लोग बच्चों के लिए कविताओं और कथाओं का संग्रह इकट्ठा कर रहे हैं और कुछ सरल कविताओं का योगदान भी ढूँढ रहे हैं। मैंने भी अपनी तरफ से एक छोटा सा प्रयास किया है। नीचे प्रस्तुत है वही प्रयास....

चाय

घर हो, सिनेमाघर हो या हो चौपाल की कोई चर्चा चटक...
दफ्तर हो, हो स्टेशन या हो एक दुकान छोटी किनारे लम्बी सड़क...

अलग अलग कभी हल्की कभी काफी कड़क....
जहाँ मिल जाये लोग सटक जाते हैं गटक गटक...

नही पाकर इसे सुबह बहुत लोग जाते हैं भड़क...
चीखते हैं चिल्लाते सर पटक पटक...

ना पाना इसका जाता है उनको बहुत खटक...
सर का दर्द फिर रह जाता है अटक अटक...

हो मुम्बई, दिल्ली, आगरा, झाँसी या हो कटक...
चाय का है जादू ऐसा सर चढ़ के बोलता है मटक मटक...

  • अंकित।

मेरे आंगन !!!

मेरे आंगन

हर सुबह उसी की नरम गर्माहट भरवा देती है
ऊर्जा जिसके बल मैं रख पाता हूँ विपरीत समय भी सॉम्य रुप
मेरे आंगन में जो निकली है बनके एक सलोनी धूप ...

हर शाम उसी कि ही तो खुश्बू भुलवा देती है
तीव्र वेदना जो देते हैं दिनचर्या के शूल
मेरे आंगन में जो खिली है बनके सुन्दर एक प्यारा सा फूल...

हर रात वोही तो करवा देती है
रौशन घर की चारदीवारों के भीतर उमड़ता हुआ सारा अंधियारा
मेरे आंगन में जो उतरी है बनके एक प्यारा सा तारा...

-अंकित.

याद !!!

याद

बार बार आते हैं नज़र
तेरे साथ बीते पल और उनका असर

सुनाई देता था कविता सा सुखद सुन्दर
मैं आज जो दिखता हूँ बिखरा हुआ एक अक्षर

मौन मौन सा रहता है मन अक्सर
जब तड़पाती है तेरी याद हमसफ़र

पर पर मिलते जो मुझे, उड़ आता मैं उस शिखर
जिसकी ऊंचाइयों में समां गयी, तू हो गयी मेरी यादों सी अमर

-अंकित ।

मेरी बिटिया !!!

मेरी बिटिया !!!

कभी हंसती है कभी रो जाती है ...
देवगणों कि भाषा में किलकारी लगाती है ...

मन गदगद हो जाता है जब नित नए भाव दर्शाती है ...
देख अपने खिलौनों को इतराती है इठलाती है ...

नहीं कोई द्वेष उसके दिल में बस प्यार झिलमिलाती है ...
नहीं कोई छलावा उसके मन में बस विश्वास जताती है ...

अपनी माँ कि आहट सुनके आंखें गोल मटकाती है ...
छोटी सी अपनी बाहों को ऊपर उठा माँ को बहुत रिझाती है ...

मुझे पाके अपने आसपास खुश हो के वो मुस्कुराती है ...
गोदी में आने को फिर बहुत लालायित हो जाती है ...

अपनी जिव्हा को होंठों तले दबा नटखटपना दिखलाती है ...
ध्यान आकर्षित करने को जोरों से शोर मचाती है ...

जब बात नहीं बनती कोई झूठे आँसू टपकाती है ...
ऐसे वैसे कैसे कैसे अपनी बातें मनवाती है ...

नहीं बोलती अभी मुख से आंखों से कथा सुनाती है ...
बातें ऐसे करते करते मेरी बिटिया सो जाती है ...

-अंकित ।

जुदाई !!!

जुदाई

मेरी कहानी में था दर्द इतना,
सुन के पत्थर भी करहा से गए.

मेरी आंखो में था खौफ इतना,
देख के आंसू भी घबरा से गए.

इतना हुआ तनहा मैं तेरी जुदाई में,
सामने मेरे सन्नाटे भी गुनगुना से गए.

-अंकित

आस !!!

आस

है जुनून कि उनको मीत हम बनाएँगे,
है यकीन वो मेरा गीत गुनगुनाएँगे

हर कदम उनका साथ मिलने पायेगा,
हर नज़र में विश्वास झिलमिलायेगा

माँ शादी का जोडा उनको भिजवायेगी,
उनकी रौशनी इस घर में जगमगायेगी

रस्में विदायी जब उनको रुलवायेगी,
मेरे आगोश में हर बेचैनी चैन पाएगी

अहसास होगा उनको तो बेताबी बढ ही जायेगी,
इस आस में रफ्ता-रफ्ता उम्र कट ही जायेगी

-अंकित

क्या जाने !!!

क्या जाने

ऍ पत्थर के दिल वाले वादों का मोल तू क्या जाने,
भरी महफिल में जो शख्स अकेला है वहशत उसकी तू क्या जाने

बंद महलों में सोने वाले शबनम का मोती तू क्या जाने,
शौक शिकार का रखने वाले हिरनी कि दहशत तू क्या जाने

प्यार दिलों का सौदा है ये तू सौदागर क्या जाने.
जिसको नही खौफ क़यामत का वो उसका रुतबा क्यों माने?

-अंकित

जिन्दगी !!!

जिन्दगी

हर लम्हा बुनता है एक कहानी,
उस कहानी को अपने गीतों में संजोने का नाम है जिन्दगी.

सब गम में पिया करते हैं,
जश्न मानाने के लिए पीने का नाम है जिन्दगी.

जिन्दगी का हर पल बहुत खास है,
ये अहसास हो जाने का नाम है जिन्दगी.

-अंकित