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मेरी बिटिया !!!

मेरी बिटिया !!!

कभी हंसती है कभी रो जाती है ...
देवगणों कि भाषा में किलकारी लगाती है ...

मन गदगद हो जाता है जब नित नए भाव दर्शाती है ...
देख अपने खिलौनों को इतराती है इठलाती है ...

नहीं कोई द्वेष उसके दिल में बस प्यार झिलमिलाती है ...
नहीं कोई छलावा उसके मन में बस विश्वास जताती है ...

अपनी माँ कि आहट सुनके आंखें गोल मटकाती है ...
छोटी सी अपनी बाहों को ऊपर उठा माँ को बहुत रिझाती है ...

मुझे पाके अपने आसपास खुश हो के वो मुस्कुराती है ...
गोदी में आने को फिर बहुत लालायित हो जाती है ...

अपनी जिव्हा को होंठों तले दबा नटखटपना दिखलाती है ...
ध्यान आकर्षित करने को जोरों से शोर मचाती है ...

जब बात नहीं बनती कोई झूठे आँसू टपकाती है ...
ऐसे वैसे कैसे कैसे अपनी बातें मनवाती है ...

नहीं बोलती अभी मुख से आंखों से कथा सुनाती है ...
बातें ऐसे करते करते मेरी बिटिया सो जाती है ...

-अंकित ।

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