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2017

नव वर्ष 2018

नव वर्ष 2018

आज की संध्या में जाता हुआ वक्त नए वर्ष को ये समझाता है:

"आज मैं बीता साल बन के सबकी यादों में सीमित रह जाऊंगा,
कुछ खास क्षणों में सिमट के बस उन यादों में जी पाऊंगा।

नए होने का गुमां ना करना पल पल को नया बनाता है,
वर्ष होने का गर्व कभी ना करना हर पल तुम्हे बनाता है।

गर कुछ ग़लत हो जाए तो भी विचलित तुम ना होना,
की हर नए सवेरे में आशा की किरणों का बसेरा है।

आशा का त्योहार सदा ही बन जाना,
निराशा का अभिनंदन कभी मत करना।"

ऐसा आशीष आपका गत साल आने वाले साल को देता चले:

सबको खुशियों का उपहार तू दे पाए,
हंसी ठहाकों से सबका संसार तू भर पाए।

बस यही प्रार्थना करता हूं,
मंगलमय नूतन वर्ष हम सभी को हो,
ऐसी अभिलाषा रखता हूं।

-अंकित.

मुस्कुराहट

मुस्कुराहट

मुस्कुराने का जब सबब पूछा था मेरे यार ने,
बुरा लगा होगा सोच के क्या कमी थी प्यार में।

अग्नि जो दिल में लगा दी थी याद की पुकार ने,
आंख भर आती किसी की भी उस धुंए के गुबार में।

जब तक खुद चाहा ना हो परवरदिगार ने,
एक पत्ता तक तो हिलता नहीं संसार में।

दिया दिल टूटने का अहसास जब मुझे काल ने,
मुस्कुराहट तो बस ढली मेरे अश्रुओं की ढाल में।

प्यार करना आसान है बस समझा नहीं इंसान ने,
दर्द को परिभाषित किया मुस्कुराहट की ज़ुबान में।

-अंकित.

पतन

पतन

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
कल पर चढ़ा हुआ कफन आज मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
तेरी बेइज़्ज़ती का दफन आज मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
नासमझ कौन कितना इस तर्क का विराम मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
हम से मैं और तू तक का सफर मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
झूठे रिश्तों के निभाने के चलन की विदाई मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
तेरे बिछड़े सुख चैन का तुझे मिलन मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
दूर की दुआ सलाम का तुझे सिलसिला मुबारक है।

-अंकित.

सवाल

सवाल

खफा नहीं हूँ मैं,
बस कुछ सवाल मन में हैं।

क्यूँ है ऐसा की रंग की दीवार हर जन में है?
धर्म की दरार क्यूँ जब परवरदिगार सब में है?

नफरत का जहर क्यूँ जब प्रीत का अमृत हर दिल में है?
क्यूँ प्रेमियों के जनाजे और दहशतगर्दों की बरात दर पर है?

जानवर का इंसान से ज्यादा समझदार लगना, क्यूँ कर है?
बुद्धिजीवी ही इस दुनिया में लाचार और बीमार क्यूँ कर है?

धर्म विद्वान् कहते हैं खुदा के घर में देर है अंधेर नहीं है,
तो फिर अत्याचार बेहिसाब, नहीं कोई विराम, क्यों कर है?

खफा नहीं हूँ मैं,
बस कुछ सवाल मन में हैं।

-अंकित.

माज़रा

माज़रा

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

क्या कुछ बात फिर से हमारी यूँ हो सी रही है ,
यूँ ही बेमतलब बेवजह बहाने तो कोई बनाता नहीं है।

कैसे आपकी शांत शख्सियत फिर गुनगुनाने लगी है,
यूँ ही आपको पुरानी मेरी आदत कोई गुदगुदाने लगी है।

हमेशा रूठे रहे जो हमसे वो अब वापस आने लगे हैं,
यूँ तो यकीं होता नहीं पर शायद दुआ कोई रंग लाने लगी है।

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

-अंकित.

रांझा

रांझा

जो आगे अपने किसी को कुछ न समझते थे कभी,
कसमों और रस्मों को उनको भी फिर निभाना तो पड़ा।

चुरा कर ले गए मेरा दिल जो थे कभी,
मिलने के लिए वक़्त उनसे फिर चुराना ही पड़ा।

जो कारवां से छूट कर पीछे रह गए थे कभी,
पूरा जीवन टूट कर अकेले उनको फिर बिताना ही पड़ा।

इमारतें और बंगले जो रेत से ढह गए थे कभी,
कर के मेहनत दिन रात उनको फिर बनाना ही पड़ा।

प्यार घायल परिंदे से हुआ हो कितना भी,
उसकी आज़ादी की खातिर उसे फिर उड़ाना तो पड़ा।

छुड़ा के सबसे दामन जो चले गए थे कभी,
दामन से उनकी यादों को फिर छुड़ाना ही पड़ा।

हर रोज़ की दौड़ में जो रुक गयी थीं कभी,
उन थमी हुई चाहतों को फिर चलाना तो पड़ा।

हुआ हो दर्द अपनों की बेवफाई से कितना भी,
गिले शिकवों को फिर भी मिटाना तो पड़ा।

हर नए पड़ाव पे जो बुन लिए थे कभी,
उन उमंगित सपनों को फिर सुलाना तो पड़ा।

मिटे हों रांझे पहले दुनिया में भले ही कितने भी,
इश्क़ में दीवानों को घर खुदा के फिर जाना ही पड़ा।

मेरे गीत की गहराई में जो खो जाते थे कभी,
आखिर खुदा को मुझे उनसे फिर मिलवाना ही पड़ा।

-अंकित.