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2018

दोस्त पुराना

दोस्त पुराना

बड़ी मुद्दत के बाद आए हो,
घड़ी भी भूल बैठी जो,
तुम ऐसा वक़्त साथ लाए हो।

चलो बैठें कुछ देर कोने में,
दफना दिए थे जो जख्म गहराई में,
मना लें शोक उनका और हों शरीक रोने में।

कि एक बार हो जाए खत्म सारे गिले शिकवे,
तो कुछ नई बात भी होगी, नया दस्तूर निकलेगा,
कि थोड़ा हम गुदगुदाएंगे कि थोड़ा तुम मुस्कुराओगे।

ढलेगी शाम जैसे ही सुहानी रात के आंचल में,
ले जाएगी सारी काली यादें वो संग अपने,
रह जाएंगी किरणें खुशियों की हमारे आशियानों में।

अब आए हो तो कुछ मिल कर दुआ हम आज ये कर लें,
ना पुरानी दुखती बातें हो ना रहे नाराजगी बाकी,
बचपन की मासूमियत हो बस अब हमारे दोस्ताने में ।

-अंकित.

ठीक है

ठीक है

गिले शिकवे ठीक हैं, रूठना मनाना ठीक है;
नहीं ठीक हर रिश्ते का निभाना लेकिन।

जिस से महसूस हो पीड़ा हर पल,
उस रिश्ते का मिट जाना ठीक है।

करीबी की मोहताज नहीं दोस्ती हमारी,
कभी तुम्हारा कभी हमारा याद कर लेना ठीक है।

-अंकित.

मतिभ्रम

मतिभ्रम

नहीं मिलेगा सूकूं कभी जिंदगानी में, ये हकीकत तो जानता हूं मैं;
"क्या बनेगी बात मौत से रूबरू हो कर?" बस इसी सवाल से हर पल जूझता हूं मैं।

किसी से पूछ तो लेता मगर डर सभी से लगता है; है किस से कौन सा रिश्ता, सोचना बेमाने सा लगता है;
जरा सोचो जरा समझो तो खून का रिश्ता तो बस कातिल से बनता है।

कभी ना किसी को जो सुनाई दे, वो सुनता रहता हूं मैं,
खुशहाल चहकती वादी में भी सिसकियां सुनता रहता हूं मैं।

सुबह के सूरज कि किरणों में अग्नि क्यूं कर मुझे ही दिखती है,
चमन भरा है फूलों से फिर कांटे क्यूं कर मुझे ही दिखते हैं,
रात के अंधियारे में क्यूं इंसानियत घुट घुट मरती मुझे ही दिखती है।

नहीं बूझता मुझे कुछ अब फिर भी सोचता रहता हूं मैं,
नहीं दिखता जो किसी को उस युद्ध की रणनीति बुनता रहता हूं मैं।

नहीं मिलेगा सूकूं कभी जिंदगानी में, ये हकीकत तो जानता हूं मैं;
"क्या बनेगी बात मौत से रूबरू हो कर?" बस इसी सवाल से हर पल जूझता हूं मैं।

-अंकित.

अनुरोध

अनुरोध

चलो ऐसे मीत की जीवन भर का साथ हो जाए,
मेरे दिल से निकले और तेरे दिल तक जा पहुंचे,
बिना बोले सिर्फ इशारों में,
हमारी सारी बात हो जाए।

मिलो ऐसे मीत हर बार
जैसे सालों की जुदाई थी,
रहो मुझ में तुम ऐसे कि बिन तेरे,
ना मेरी शिनाख्त हो पाए।

तुम्ही तुम हो मेरी सांसों में
तुम्ही हो मेरी धड़कन भी,
करो दुआ मीत ऐसी तुम की खुदा की हो इस प्यार पर रहमत,
या फिर फना मुहब्बत में अंकित अभी आज इसी पल यार हो जाए।

-अंकित.

दोस्त पुराने

दोस्त पुराने

यारों को देख कर अक्सर, मुस्कान आ ही जाती है;
उम्र जो हो गयी है, वो कुछ कम सी हो ही जाती है।

नाज़ुक पड़ाव पर जीवन के, जब कदम डगमगा सकते थे;
नहीं हुआ बस ऐसा, कि साथ तुम सब थे।

देख के तुम सब के चेहरे नये पुराने,
नाचीज़ की आंखें नम हो ही जाती हैं।

-अंकित.