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दोस्त पुराना

दोस्त पुराना

बड़ी मुद्दत के बाद आए हो,
घड़ी भी भूल बैठी जो,
तुम ऐसा वक़्त साथ लाए हो।

चलो बैठें कुछ देर कोने में,
दफना दिए थे जो जख्म गहराई में,
मना लें शोक उनका और हों शरीक रोने में।

कि एक बार हो जाए खत्म सारे गिले शिकवे,
तो कुछ नई बात भी होगी, नया दस्तूर निकलेगा,
कि थोड़ा हम गुदगुदाएंगे कि थोड़ा तुम मुस्कुराओगे।

ढलेगी शाम जैसे ही सुहानी रात के आंचल में,
ले जाएगी सारी काली यादें वो संग अपने,
रह जाएंगी किरणें खुशियों की हमारे आशियानों में।

अब आए हो तो कुछ मिल कर दुआ हम आज ये कर लें,
ना पुरानी दुखती बातें हो ना रहे नाराजगी बाकी,
बचपन की मासूमियत हो बस अब हमारे दोस्ताने में ।

-अंकित.

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