मेरा लाडला
मेरा लाडला
वही रूह है, वही वफ़ा, पर अंदाज़ ज़रा मस्ताना है,
आंखों में नादानी वही, भोलापन वही पुराना है,
कल का संत "Magic" मेरा, आज बना "Music" शैताना है।
वो शांत सौम्यता छोड़ कर अब, शरारत साथ में लाया है,
मुखरता, चंचलता का भंडार बना उसको, स्वयं ईश्वर ने लौटाया है।
मौन नहीं, बेज़ुबान नहीं, अवगत है, अंजान नहीं, वो अपनी बात बोलता और बताता है,
कभी मटकते सर, कभी अलग भौंक से, कभी गीली नाक और कभी हर्षाती दुम से, नौटंकी कुछ भी करके, बस अपनी बात मनवाता है।
है माहिर हर भाव को पढ़ने में वो, बस निस्वार्थ प्यार दर्शाता है,
मानवों से अधिक समझदार वो, नित नई भाषा मुझे सिखाता है।
है इतना छोटा सा, पर समय का मोल दिखाता है,
जब हो वक्त मेरे दफ्तर का तो शांती से सो जाता है।
पर शाम के पाँच बजते ही वो, अपनी 'squeaky ball' ले आता है,
दफ्तर की कुर्सी से उठने को, वो मुझे विवश कर जाता है।
"10 minutes puppy" - कहूँ तो वो अधीर जताता है,
बिन घड़ी, सही दस मिनट में वो फिर से याद दिलाता है।
प्रेम, वफ़ा, क्रोध व हर्ष - सब महसूस वो करता है,
पर प्राथमिकताओं को, हमसे बेहतर वो समझता है।
है मेरा लाडला वो, दीदी का पहरेदार भी है,
है मां का चहेता वो, हम तीनों की जान भी है।
वफादारी की मूरत है वो, न कोई कपट, न कोई छल,
जो हर इंसान होता ऐसा ही, तो जीवन होता कितना सरल।
-अंकित।