Skip to content

कविता संग्रह

जड़

जड़

सिखा सकता है कौन पौधे को, क्या करना है कब किसको,
तू जड़ को जड़ ही रहने दे, उसको व्यर्थ ही चेतन ना कर।

जो लगे फल तो कभी गुमां ना कर,
फलों को गिन उनका विश्लेषण ना कर।

बदलती ऋतु में गिरते पत्तों का शोक ना कर,
संभाल वो जो हरे हैं, उनको भी रोक मत पर।

मोल रचेयता का चुकाना बन के मिट्टी, उनकी किस्मत है,
माली तू सींचते रह और सृष्टि पे विश्वास तो कर।

गर जड़ में जादू है तो हरियाली फिर से आएगी,
लेकिन जो सड़ चुकी हो जड़ तो मिट्टी कुछ कर ना पाएगी।

कर उसका त्याग नए पौधे को तू दे अब घर,
है तू माली और ये तेरी कर्मभूमि है,
जड़ को जड़ ही रहने दे, उसको व्यर्थ ही चेतन ना कर।

-अंकित.

खूबसूरत बला

खूबसूरत बला

मेरे माता पिता ने मुझे सदा ही ये सिखाया है
किसी लड़की का ना हो अपमान चाहे जान गंवानी पड़े

रहे कोशिश की घर की लक्ष्मी को कोई दुख ना हो
फिर रोटी सूखी चाहे खुद को क्यूं ना खानी पड़े

हूं ऐसे परिवार से, जहां फर्क नहीं है बहुओं से,
जहां लड़की जन्मी है दुआओं से तो ऐसे विचार फिर में रखता हूं,
औरत को समाधिकार समझता हूं
मज़ाक अपनी जगह सही है लेकिन,
अबला को बला नहीं समझता हूं

ना बुलाओ अबला को खूबसूरत बला,
किसी की बेटी किसी की मां है वो

जो कर दिया तुम्हे पाल के काबिल इतना
किसी औरत की मेहनत उसी की कला है वो

डूब जाते जिंदगी के तूफानों में हम
किसी देवी की दुआ है जो टला है वो

ना बुलाओ अबला को खूबसूरत बला,
किसी की बेटी किसी की मां है वो

-अंकित.

मेरी नन्ही परी

मेरी नन्ही परी

डर लगता था कभी जब होती थी खड़ी
और हाथ अचानक मेरा बन जाता था उसकी सुरक्षा कड़ी
वो मेरी नन्ही परी हो रही है बड़ी

अभी कल ही तो मेरी गोदी में आई थी
आज उसकी गहरी सोच हर्षाती है मुझे हर घड़ी
वो मेरी नन्ही परी हो रही है बड़ी

कल जो झूठमूठ के आंसुओं से अपनी बात मनवाती थी
आज सहेलियों की गुत्थियां सुलझाती है सहजता से बड़ी
वो मेरी नन्ही परी हो रही है बड़ी

कल झूठे फोन करवाती थी कहानियां पढ़वाती थी
आज फोन स्वयं कर लेती है और पुस्तकों से है दोस्ती बड़ी
वो मेरी नन्ही परी हो रही है बड़ी

कल जिस के हाथों को पकड़ के कलम चलवाई थी
आज उसी के हाथों से कागजों पर अद्भुत कृतियां चढ़ी
वो मेरी नन्ही परी हो रही है बड़ी

कल ही तो था कि वो हाथ छुड़ा के भागने को आतुर थी
आज नया शहर हो तो स्वत: उंगली पकड़ लेती है वो मेरी
हिरणी भी है शेरनी भी है चंचल भी है गंभीर भी है जो
वो मेरी नन्ही परी हो रही है बड़ी

-अंकित.

दोस्त पुराना

दोस्त पुराना

बड़ी मुद्दत के बाद आए हो,
घड़ी भी भूल बैठी जो,
तुम ऐसा वक़्त साथ लाए हो।

चलो बैठें कुछ देर कोने में,
दफना दिए थे जो जख्म गहराई में,
मना लें शोक उनका और हों शरीक रोने में।

कि एक बार हो जाए खत्म सारे गिले शिकवे,
तो कुछ नई बात भी होगी, नया दस्तूर निकलेगा,
कि थोड़ा हम गुदगुदाएंगे कि थोड़ा तुम मुस्कुराओगे।

ढलेगी शाम जैसे ही सुहानी रात के आंचल में,
ले जाएगी सारी काली यादें वो संग अपने,
रह जाएंगी किरणें खुशियों की हमारे आशियानों में।

अब आए हो तो कुछ मिल कर दुआ हम आज ये कर लें,
ना पुरानी दुखती बातें हो ना रहे नाराजगी बाकी,
बचपन की मासूमियत हो बस अब हमारे दोस्ताने में ।

-अंकित.

ठीक है

ठीक है

गिले शिकवे ठीक हैं, रूठना मनाना ठीक है;
नहीं ठीक हर रिश्ते का निभाना लेकिन।

जिस से महसूस हो पीड़ा हर पल,
उस रिश्ते का मिट जाना ठीक है।

करीबी की मोहताज नहीं दोस्ती हमारी,
कभी तुम्हारा कभी हमारा याद कर लेना ठीक है।

-अंकित.

मतिभ्रम

मतिभ्रम

नहीं मिलेगा सूकूं कभी जिंदगानी में, ये हकीकत तो जानता हूं मैं;
"क्या बनेगी बात मौत से रूबरू हो कर?" बस इसी सवाल से हर पल जूझता हूं मैं।

किसी से पूछ तो लेता मगर डर सभी से लगता है; है किस से कौन सा रिश्ता, सोचना बेमाने सा लगता है;
जरा सोचो जरा समझो तो खून का रिश्ता तो बस कातिल से बनता है।

कभी ना किसी को जो सुनाई दे, वो सुनता रहता हूं मैं,
खुशहाल चहकती वादी में भी सिसकियां सुनता रहता हूं मैं।

सुबह के सूरज कि किरणों में अग्नि क्यूं कर मुझे ही दिखती है,
चमन भरा है फूलों से फिर कांटे क्यूं कर मुझे ही दिखते हैं,
रात के अंधियारे में क्यूं इंसानियत घुट घुट मरती मुझे ही दिखती है।

नहीं बूझता मुझे कुछ अब फिर भी सोचता रहता हूं मैं,
नहीं दिखता जो किसी को उस युद्ध की रणनीति बुनता रहता हूं मैं।

नहीं मिलेगा सूकूं कभी जिंदगानी में, ये हकीकत तो जानता हूं मैं;
"क्या बनेगी बात मौत से रूबरू हो कर?" बस इसी सवाल से हर पल जूझता हूं मैं।

-अंकित.

अनुरोध

अनुरोध

चलो ऐसे मीत की जीवन भर का साथ हो जाए,
मेरे दिल से निकले और तेरे दिल तक जा पहुंचे,
बिना बोले सिर्फ इशारों में,
हमारी सारी बात हो जाए।

मिलो ऐसे मीत हर बार
जैसे सालों की जुदाई थी,
रहो मुझ में तुम ऐसे कि बिन तेरे,
ना मेरी शिनाख्त हो पाए।

तुम्ही तुम हो मेरी सांसों में
तुम्ही हो मेरी धड़कन भी,
करो दुआ मीत ऐसी तुम की खुदा की हो इस प्यार पर रहमत,
या फिर फना मुहब्बत में अंकित अभी आज इसी पल यार हो जाए।

-अंकित.

दोस्त पुराने

दोस्त पुराने

यारों को देख कर अक्सर, मुस्कान आ ही जाती है;
उम्र जो हो गयी है, वो कुछ कम सी हो ही जाती है।

नाज़ुक पड़ाव पर जीवन के, जब कदम डगमगा सकते थे;
नहीं हुआ बस ऐसा, कि साथ तुम सब थे।

देख के तुम सब के चेहरे नये पुराने,
नाचीज़ की आंखें नम हो ही जाती हैं।

-अंकित.

नव वर्ष 2018

नव वर्ष 2018

आज की संध्या में जाता हुआ वक्त नए वर्ष को ये समझाता है:

"आज मैं बीता साल बन के सबकी यादों में सीमित रह जाऊंगा,
कुछ खास क्षणों में सिमट के बस उन यादों में जी पाऊंगा।

नए होने का गुमां ना करना पल पल को नया बनाता है,
वर्ष होने का गर्व कभी ना करना हर पल तुम्हे बनाता है।

गर कुछ ग़लत हो जाए तो भी विचलित तुम ना होना,
की हर नए सवेरे में आशा की किरणों का बसेरा है।

आशा का त्योहार सदा ही बन जाना,
निराशा का अभिनंदन कभी मत करना।"

ऐसा आशीष आपका गत साल आने वाले साल को देता चले:

सबको खुशियों का उपहार तू दे पाए,
हंसी ठहाकों से सबका संसार तू भर पाए।

बस यही प्रार्थना करता हूं,
मंगलमय नूतन वर्ष हम सभी को हो,
ऐसी अभिलाषा रखता हूं।

-अंकित.

मुस्कुराहट

मुस्कुराहट

मुस्कुराने का जब सबब पूछा था मेरे यार ने,
बुरा लगा होगा सोच के क्या कमी थी प्यार में।

अग्नि जो दिल में लगा दी थी याद की पुकार ने,
आंख भर आती किसी की भी उस धुंए के गुबार में।

जब तक खुद चाहा ना हो परवरदिगार ने,
एक पत्ता तक तो हिलता नहीं संसार में।

दिया दिल टूटने का अहसास जब मुझे काल ने,
मुस्कुराहट तो बस ढली मेरे अश्रुओं की ढाल में।

प्यार करना आसान है बस समझा नहीं इंसान ने,
दर्द को परिभाषित किया मुस्कुराहट की ज़ुबान में।

-अंकित.