Skip to content

कविता संग्रह

पतन

पतन

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
कल पर चढ़ा हुआ कफन आज मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
तेरी बेइज़्ज़ती का दफन आज मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
नासमझ कौन कितना इस तर्क का विराम मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
हम से मैं और तू तक का सफर मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
झूठे रिश्तों के निभाने के चलन की विदाई मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
तेरे बिछड़े सुख चैन का तुझे मिलन मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
दूर की दुआ सलाम का तुझे सिलसिला मुबारक है।

-अंकित.

सवाल

सवाल

खफा नहीं हूँ मैं,
बस कुछ सवाल मन में हैं।

क्यूँ है ऐसा की रंग की दीवार हर जन में है?
धर्म की दरार क्यूँ जब परवरदिगार सब में है?

नफरत का जहर क्यूँ जब प्रीत का अमृत हर दिल में है?
क्यूँ प्रेमियों के जनाजे और दहशतगर्दों की बरात दर पर है?

जानवर का इंसान से ज्यादा समझदार लगना, क्यूँ कर है?
बुद्धिजीवी ही इस दुनिया में लाचार और बीमार क्यूँ कर है?

धर्म विद्वान् कहते हैं खुदा के घर में देर है अंधेर नहीं है,
तो फिर अत्याचार बेहिसाब, नहीं कोई विराम, क्यों कर है?

खफा नहीं हूँ मैं,
बस कुछ सवाल मन में हैं।

-अंकित.

माज़रा

माज़रा

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

क्या कुछ बात फिर से हमारी यूँ हो सी रही है ,
यूँ ही बेमतलब बेवजह बहाने तो कोई बनाता नहीं है।

कैसे आपकी शांत शख्सियत फिर गुनगुनाने लगी है,
यूँ ही आपको पुरानी मेरी आदत कोई गुदगुदाने लगी है।

हमेशा रूठे रहे जो हमसे वो अब वापस आने लगे हैं,
यूँ तो यकीं होता नहीं पर शायद दुआ कोई रंग लाने लगी है।

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

-अंकित.

रांझा

रांझा

जो आगे अपने किसी को कुछ न समझते थे कभी,
कसमों और रस्मों को उनको भी फिर निभाना तो पड़ा।

चुरा कर ले गए मेरा दिल जो थे कभी,
मिलने के लिए वक़्त उनसे फिर चुराना ही पड़ा।

जो कारवां से छूट कर पीछे रह गए थे कभी,
पूरा जीवन टूट कर अकेले उनको फिर बिताना ही पड़ा।

इमारतें और बंगले जो रेत से ढह गए थे कभी,
कर के मेहनत दिन रात उनको फिर बनाना ही पड़ा।

प्यार घायल परिंदे से हुआ हो कितना भी,
उसकी आज़ादी की खातिर उसे फिर उड़ाना तो पड़ा।

छुड़ा के सबसे दामन जो चले गए थे कभी,
दामन से उनकी यादों को फिर छुड़ाना ही पड़ा।

हर रोज़ की दौड़ में जो रुक गयी थीं कभी,
उन थमी हुई चाहतों को फिर चलाना तो पड़ा।

हुआ हो दर्द अपनों की बेवफाई से कितना भी,
गिले शिकवों को फिर भी मिटाना तो पड़ा।

हर नए पड़ाव पे जो बुन लिए थे कभी,
उन उमंगित सपनों को फिर सुलाना तो पड़ा।

मिटे हों रांझे पहले दुनिया में भले ही कितने भी,
इश्क़ में दीवानों को घर खुदा के फिर जाना ही पड़ा।

मेरे गीत की गहराई में जो खो जाते थे कभी,
आखिर खुदा को मुझे उनसे फिर मिलवाना ही पड़ा।

-अंकित.

२०१७

२०१७

​साल पुराना जो बीता है, उसमें कुछ कड़वा कुछ मीठा था,
गुड़ का आभास इस कर था कि उसमें नीम यकीनन था।

रीत निभाता हुआ गत वर्ष नए को आज ताज पहनाता है,
पल पल ढलता हुआ वो नए वर्ष को यही सिखलाता है:
बस मीठा ही मीठा मत देना, थोड़ा नीम ज़रूरी है

प्रार्थना प्रभु से है मेरी की नया वर्ष यह सीख जरूरी ले,
सुख के आभास की खातिर थोड़ी परेशानी हम सबको दे।

लेकिन सभी जन के लिए मिश्रण का नाप कुछ ऐसा हो,
मीठीे यादों का सागर हो और नीम का बस एक तड़का हो।

ईश्वर करे आने वाला साल आपके और आपके सभी प्रियजनों के लिए लाभदायक एवं मंगलमयी हो।

-अंकित.

सीख

सीख

वो रिश्ते ही क्या जो किसी चीज़ के मोहताज़ हो जाएं
मशरूफ हम इतने भी नहीं की गिले शिकवे राज़ हो जाएं

कितना किसे मिलेगा इस धरती पर न इसका नाज़ हो जाए
करोगे क्या तुम उस नैमत से जरा इसकी भी लाज हो जाए

है सीख मेरे निर्माता की जो करे कर्म वो जांबाज़ हो जाये
है जुनूँ वो जांबाज़ होने का,तो या वो सच आज हो जाये

या फिर ऍ ख़ुदा मेरा भी कुछ इलाज़ हो जाये

-अंकित.

मैं

मैं

अपना अक्स जिसमे दिखे वो आइना बना दिया
हालात ने मुझको इतना कमीना बना दिया

पत्थर को जो तोड़े वो लोहा बना दिया
वक़्त की तपिश ने मुझे हथौड़ा बना दिया

चीर दे जो अँधेरे को वो जुगनू बना दिया
खुदा ने दिखने में मामूली एक कीड़ा बना दिया

सभी को जो चुभ जाए वो काँटा बना दिया
कुदरत ने मुझे गुलाब का पहरेदार बना दिया

बहुत सोचा बड़ा पूछा तो किसी ने जता दिया
बना के चाँद उनको मुझे चाँद का दाग बना दिया

-अंकित.

दीवाली २०१५

दीवाली २०१५

प्रभु से प्रार्थना मेरी बस इतनी है,
हर घर जले दीपक, अन्धकार का नामोनिशान मिट जाए।

मिटे गरीबी और अशिक्षा आज धरती से,
धर्म के ठेकेदारों का किस्सा बस तमाम आज हो जाये।

खून से रंगा कभी फिर ना अखबार नज़र आये,
उज्जवल भविष्य सभी का हो, कुछ ऐसा चमत्कार हो जाए।

प्रभु से प्रार्थना मेरी बस इतनी है, हर घर जले दीपक,
अन्धकार का नामोनिशान मिट जाए।

आपको और आपके प्रियजनों को मेरी तरफ से
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!!

-अंकित.

आज़ादी

आज़ादी

शहीद हुए जो देश की आज़ादी की खातिर
हुकूमत उनको दीवाना अराजक बुलाती थी

गोरों ने ऐसी चाल चली आज़ादी मिली स्वराज नहीं
भ्रष्टाचार की बिमारी ने सोने की चिड़िया के पर क़तर दिए

आज आजादी है कहने को लेकिन माँ बेटी की लाज नहीं
धर्म की आड़ में देखो आदम जीवन का मोल नहीं

देश गोरे व्यापारी चला रहे थे तब शहीदों ने ठानी थी
देश व्यापारी चला रहे हैं अब कुछ सरफिरे आगे आये हैं

सम्पूर्ण आज़ादी उनका मकसद है और पाने में वो सक्षम हैं
स्वराज मिलेगा जब सबको उस दिन के जश्न का मैं अभिलाषी हूँ

तब तक मेरा नमन उन्हें जिनकी शहादत कुछ रंग ले आई
तब तक मेरा नमन उन्हें जो उस जस्बे को वापस ले आए

-अंकित.

गद्दार

गद्दार

जिंदगी का खेल खेलने में नहीं,
फर्क इसमें है की खिलाड़ी क्या सोचते हैं

मैं सिर्फ जीत सोचता हूँ और बाकी,
मेरी हार के पल में अपनी ख़ुशी खोजते हैं

मुझे हरा सके अब ऐसे दुश्मन कहाँ दिखते हैं,
हुई यदि हार तो कारण सदा द्रोही ही बनते हैं

खंज़र उनके हाथों सने खून में हर बार दिखते है,
जो बुला कर दोस्त पीछे पीठ पर वार करते हैं

किस्मत अच्छी है मेरी के मेरे दोस्त कम बनते हैं,
लेकिन जो बनते है वो कभी भी गद्दार नहीं निकलते हैं

-अंकित.