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कविता संग्रह

हमारे दोस्त रजनीश

हमारे दोस्त रजनीश

एक हैं हमारे दोस्त रजनीश,
मिली है उनको ग्रुप में सांप की पोस्ट।

सांप होने के उनको हैं फायदे without cost,
जब देखो किसी को भी डस के हो जाते हैं suddenly वो lost।

पहचाने जाते हैं वो और एक नाम से,
लेना देना हांलाकि इसका नहीं कुछभी उनके काम से।

उनका मिठास भरे लहजे में हर बात कहना,
बना गले की आफत और पड़ा नामे "बहना"।

बहुत धैर्य रखके पड़ा उनको सहना,
hibernation में इस वज़ह से पड़ा उनको रहना।

लेकिन बहुत वीरता से की उन्होंने fight,
साध ली चुप्पी जो थी choice right।

चुप्पी से उनकी पहचान ऐसी बदली,
ओशो नाम ने उनकी करी बहुत हालत पतली।

ओशो नाम का भी हुआ बहुत हल्ला,
पड़ा बहना से भरी छुड़ाना ओशो से पल्ला।

कुछ भी कहो हैं इंसान ये बहुत अच्छे,
नाम है सांप पर हैं दिल के बहुत सच्चे।

मज़ाक हमने किया है, खफा हमसे न होना,
पहले कर दो माफ़, फिर बिल में जाके रोना।

-अंकित।

काल

काल

हर कतरा कतरा जीने को मुझे गम के आंसू पीने दो ...
यूं लम्हा लम्हा जीने को एक जाम मुझे और पीने दो ...

हर महफिल महफिल हंसने को मुझे तनहाई में रोने दो ...
यूं जिंदा जिंदा दिखने को मुझे कभी काल से मिलने दो ...

हर साहिल साहिल मिलने को मुझे दरिया से सागर बनने दो ...
यूं गगन गगन में उड़ने को मेरे प्राण पखेरू उड़ने दो ...

-अंकित

कैसी ज़िन्दगी

कैसी ज़िन्दगी

भूख से बिलखती हुई,
ठण्ड में ठिठुरती हुई,
ग़म में तड़पती हुई,
रोटी कपडे और मकान की
दूकान सी ज़िन्दगी।

शमा सी जलती हुई,
वक़्त सी बढती हुई,
उम्र सी ढलती हुई,
साल-महीने-दिन और पल की
मेहमान सी ज़िन्दगी।

-अंकित।

वो चंद घडी

वो चंद घडी

आये गए कितने ख़याल, वो चंद घडी ...
दीवाने का न पूछो हाल, वो चंद घडी ...

बनते गए इतने सवाल, वो चंद घडी ...
गए जवाब मेरी झोली में डाल, वो चंद घडी ...

उठी दिल में प्यास, जो आये मेरे पास वो चंद घडी ...
क्या हुआ होगा उनको अहसास, थी रुकी हमारी सांस वो चंद घडी ...

खेल किस्मत ने खेल कुछ अजीब, दिखा के नीर प्यासे को वो चंद घडी ...
न समझे वो हमें अपना रकीब, दुआ हर रोम से निकली वो चंद घडी ...

था ख्वाब में सोचा नहीं, हुआ ऐसा नज़ारा वो चंद घडी ...
बरसों के भटके हुए राही को, मिल गया हो जैसे किनारा वो चंद घडी ...

यकीन हमको हो चला कोई रिश्ता बन ही गया वो चंद घडी ...
खूबसूरत सी बला से सौदा दिल का हो ही गया वो चंद घडी ...

-अंकित।

जगह

जगह

पलक आंख की झपकती है, आहट जगह बना रही है ...
ख्वाहिशों कि बस्ती है,हकीकत जगह बना रही है ...

दीवानों की मस्ती है, मेहनत जगह बना रही है ...
हर अहसास की हस्ती है, मुहब्बत जगह बना रही है ...

कीमत बहुत जान की सस्ती है, जन्नत जगह बना रही है ...
छोटी जीवन की कश्ती है, मुस्कराहट जगह बना रही है ...

-अंकित

पिता

Pitah is Father.

Father would always give the advice from what has been his experience with life to his child. It is this father who teaches among other things his kid how to deal with situations in life which is the essence of this poem.

A man Is what his Father makes him !!!!!

-Ankit.

पिता

रखना सर को ऊंचा के तुम मेरी पहचान हो ...
सबक सदा ज़हन में ये तुम्हारे विराजमान हो ...

ना करना ऐतबार जबतक चीज़ वो बेजान हो ...
चाहे जाये यारी चाहे जाती शान हो ...

हर चीज़ बिक ही जाती है कपड़ा हो के आन हो...
कीमत लग ही जाती मिटटी हो के जान हो ...

क्या करेगा चन्दा और कितना भी सूरज दिव्यमान हो ...
रहेगा अँधेरा जब घर में ना कोई रौशंदान हो ...

ना सोच के ये सब तू मेरे बच्चे परेशान हो ...
वक़्त बदल ही देता है दुनिया के हर इन्सान को ...

ना मान लेना हार जब तक हाथ में कमान हो ...
राह मिल ही जायेगी जब जीतने का ध्यान हो ...

ना डर के दिखा नीचा खुदा के हर अहसान को ...
मंज़िल ढूँढ ही लेती है उसके हर मेहमान को ...

-अंकित