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आश्वासन

आश्वासन

भीतर मन के क्या है बोल दिया तो,
द्वार वो अपने डर का खोल दिया तो,

सर फिर ऊपर बोलो रख पाओगे कैसे,
जमाने को दबाने से रोक पाओगे कैसे।

निराकार डर को शब्दों से आकार मत दो,
करते रहो श्रम और स्वाभिमान को बल दो।

रहता नहीं वक्त कभी एक जैसा ये जान लो अब,
रहो आश्वस्त, भले का भला सदा ही करेगा रब।

अंकित।