मेरे आंगन !!!
मेरे आंगन¶
हर सुबह उसी की नरम गर्माहट भरवा देती है
ऊर्जा जिसके बल मैं रख पाता हूँ विपरीत समय भी सॉम्य रुप
मेरे आंगन में जो निकली है बनके एक सलोनी धूप ...
हर शाम उसी कि ही तो खुश्बू भुलवा देती है
तीव्र वेदना जो देते हैं दिनचर्या के शूल
मेरे आंगन में जो खिली है बनके सुन्दर एक प्यारा सा फूल...
हर रात वोही तो करवा देती है
रौशन घर की चारदीवारों के भीतर उमड़ता हुआ सारा अंधियारा
मेरे आंगन में जो उतरी है बनके एक प्यारा सा तारा...
-अंकित.