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दार्शनिक

तो क्या कीजियेगा ???

तो क्या कीजियेगा

प्रियतमा नहीं साथ में,  
इसका जब अहसास हो,  
तो क्या कीजियेगा ???

रखवाला नहीं पास में,
इसका जब आभास हो,
तो क्या कीजियेगा ???

बियाँबान रेगिस्तान में  
उगलता आग आसमान हो, 
तो  क्या  कीजियेगा ???

दरख्तों के अभाव में,
ना छाँव का निशाँ हो,
तो क्या कीजियेगा ???

बिखरते लम्हों के शोर में,
चटकती जीवन की डोर हो,
तो क्या कीजियेगा ???

कठिन जीवन के मोड़ में, 
ना प्रभु का साथ हो, 
तो क्या कीजियेगा ???

-अंकित

भला करेंगे अब तुम्हारा साई

भला करेंगे अब तुम्हारा साई

अब तक क्यों तुमने है मुंह की खाई ...
नहीं अभी तक ये बात समझ में तुमको आई ...

कब तक खड़े रहोगे चहुँ ओर जब जमी हो इतनी काई ...
खड़े संभल भी जाओ दौड़ की बात कर रहे हो तुम मेरे भाई ...

जहाँ हर बात प्यार से शुरू और ख़त्म होती हो छेड़े किया तुम वहीं लड़ाई ...
चलो पकड़ लो राह प्रेम की भला करेंगे अब तुम्हारा साई ...

-अंकित ।

प्रश्न बराबरी का ???

रचना के ब्लोग पर मैंने उनकी रचना "तुम्हारे अस्तित्व की जननी हूँ मै" पढी । अच्छी भावपूर्ण कविता है । पढ़ के मैंने उनके ब्लोग पर टिप्पणी में कविता कि प्रशंसा करते हुए एक कविता में ही जवाब भी हाजिर किया जो नीचे लिखा है । किसी कारण से प्रशंसा टिप्पणी में दिखाई दी लेकिन जवाब नदारद तो मैंने सोचा शायद सही भी है । जब जवाब मेरी सोच की उपज है तो मेरे "ख्वाब और सोच" में ही क्यों न दिखे । :)

हाँ अफ़सोस रहेगा कि ये कार्यक्रम आगे नही बढ़ सका ...

प्रश्न बराबरी का ???

पूछना है मुझे की क्या मेरे अस्तित्व को जन्माने वाली ....
सोचा है अस्तित्व अकेले तेरा भी नही था जब तक नही तुने मुझे जन्मा ....

तू मां भी मेरी है ,
मेरी ही है बहिन तू,
मेरे जीवन की तू ही सन्गिनी है पर फ़िर भी मेरी है,
मेरी पुत्री है और मेरी खुशी भी ,
जब तू पूरी मेरी है,
हर रूप में मेरी है,
फ़िर क्युं सोचुं तुझ्से बराबरी की,
बस तु मेरी है हां मेरी है....

मेरे अस्तित्व की जननी तेरे अस्तित्व का कारण मै हुं ...
हम साथी हैं जन्म जन्मान्तर के ...
रचनाकर ने इस ब्रह्मान्ड के हम दोनो को बनाया है....
न तू मुझ्से बढ्कर है न मै तुझ्से बढ्कर हुं ....

-अंकित.

किसलिए...

किसलिए

फिर दर्द को मेरी याद आयी क्यों कर,
ये डोर टूटी हुई फिर जुड़ने आयी किसलिए ???

फिर क़दमों में मेरे आवारगी आयी क्यों कर,
ये बीते हुए लम्हों में रवानगी आयी किसलिए ???

फिर दीवाने दिल में बेचारगी छाई क्यों कर,
ये कुल्मुलाहते अहसास और वोही दीवानगी छाई किसलिए ???

फिर खो जाने कि बेताब सी एक चाहत अपनाई क्यों कर,
ये ख्वाहिश कि दर्द-ए-दिल पायेगा राहत अपनाई किसलिए ???

-अंकित

क्या जाने !!!

क्या जाने

ऍ पत्थर के दिल वाले वादों का मोल तू क्या जाने,
भरी महफिल में जो शख्स अकेला है वहशत उसकी तू क्या जाने

बंद महलों में सोने वाले शबनम का मोती तू क्या जाने,
शौक शिकार का रखने वाले हिरनी कि दहशत तू क्या जाने

प्यार दिलों का सौदा है ये तू सौदागर क्या जाने.
जिसको नही खौफ क़यामत का वो उसका रुतबा क्यों माने?

-अंकित

हर कदम

हर कदम

जिसकी कल्पना से संसार का हर रंग है,
जिसकी गायकी का एकदम निराला हर ढंग है,
जिसकी मुरलिया से ब्रिज की हर बाल में छाती उमंग है,
वो इश्वर हर कदम संग है !!!

जिसका कर्म ही हर बुराई पर जंग है,
जिसका हर रूप सदा करता दंग है,
जिसका हो ध्यान तो कुछ भी होता नहीं भंग है,
वो इश्वर हर कदम संग है !!!

जिसका राह दिखाता हर जीवन प्रसंग है,
जिसकी महिमा गाती हर मृदंग है,
जिसके बल से बहती हर जल तरंग है,
वो इश्वर हर कदम संग है !!!

-अंकित।

बाँध नहीं सकते

बाँध नहीं सकते

संसार कि माया
मृत्यु का साया
नश्वर ये काया

प्रीतम कि प्रीत को
मीत के गीत को
प्यार के संगीत को

बाँध नहीं सकते
धुंधला नहीं सकते

चाहे उम्र का पड़ाव हो
चाहे जीवन का ठहराव हो
चाहे डूबती साँसों कि नाव हो

प्रीतम कि प्रीत को
मीत के गीत को
प्यार के संगीत को

बाँध नहीं सकते
धुंधला नहीं सकते

-अंकित

सुनायी देती है उसकी आवाज़

सुनायी देती है उसकी आवाज़

वर्षा के बरसते पानी में
गरज़ते बादलों कि आकाशवाणी में
सागर कि लहरों के हरेक अंदाज़ में
सुनायी देती है उसकी आवाज़ ....

ऊंचे गगन में उडती चिड़िया के गीत में
खेलते बच्चों कि हंसी हार और जीत में
दो प्रेमियों कि दबी दबी लेकिन सच्ची प्रीत में
सुनायी देती है उसकी आवाज़ ....

गरमी से थके इन्सान को वृक्ष से मिली राहत में
वो तेज़ हवा के गुजरने से गिरते पत्तों कि सरसराहट में
वो माँ कि लोरी सुनके हर बालक को आती नींद के राज़ में
सुनायी देती है उसकी आवाज़ ....

-अंकित

काल

काल

हर कतरा कतरा जीने को मुझे गम के आंसू पीने दो ...
यूं लम्हा लम्हा जीने को एक जाम मुझे और पीने दो ...

हर महफिल महफिल हंसने को मुझे तनहाई में रोने दो ...
यूं जिंदा जिंदा दिखने को मुझे कभी काल से मिलने दो ...

हर साहिल साहिल मिलने को मुझे दरिया से सागर बनने दो ...
यूं गगन गगन में उड़ने को मेरे प्राण पखेरू उड़ने दो ...

-अंकित

जगह

जगह

पलक आंख की झपकती है, आहट जगह बना रही है ...
ख्वाहिशों कि बस्ती है,हकीकत जगह बना रही है ...

दीवानों की मस्ती है, मेहनत जगह बना रही है ...
हर अहसास की हस्ती है, मुहब्बत जगह बना रही है ...

कीमत बहुत जान की सस्ती है, जन्नत जगह बना रही है ...
छोटी जीवन की कश्ती है, मुस्कराहट जगह बना रही है ...

-अंकित