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कसूर

कसूर

शाम फुर्सत की मिल जाए, दुआ हर इबादत में ये माँगी
पायी फुरक़त, कोई हमको समझाए, है मेरा कसूर कहाँ ?

हरेक रात चांदनी आये, दुआ हर इबादत में ये माँगी
चाँद के साथ बादल भी आये, है मेरा कसूर कहाँ ?

खुशनुमा हर सवेरा हो पाए, दुआ हर इबादत में ये माँगी
खबरनामा खून से रंगा नज़र आये, है मेरा कसूर कहाँ ?

-अंकित

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