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जड़

जड़

सिखा सकता है कौन पौधे को, क्या करना है कब किसको,
तू जड़ को जड़ ही रहने दे, उसको व्यर्थ ही चेतन ना कर।

जो लगे फल तो कभी गुमां ना कर,
फलों को गिन उनका विश्लेषण ना कर।

बदलती ऋतु में गिरते पत्तों का शोक ना कर,
संभाल वो जो हरे हैं, उनको भी रोक मत पर।

मोल रचेयता का चुकाना बन के मिट्टी, उनकी किस्मत है,
माली तू सींचते रह और सृष्टि पे विश्वास तो कर।

गर जड़ में जादू है तो हरियाली फिर से आएगी,
लेकिन जो सड़ चुकी हो जड़ तो मिट्टी कुछ कर ना पाएगी।

कर उसका त्याग नए पौधे को तू दे अब घर,
है तू माली और ये तेरी कर्मभूमि है,
जड़ को जड़ ही रहने दे, उसको व्यर्थ ही चेतन ना कर।

-अंकित.

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