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कवितायेँ

साक़ी

साक़ी

प्यास है बहुत अभी मुझमें बाकी,
मय कम न पड़ने पाए साक़ी,

अभी भी है बहुत होश बाकी,
ना ख़त्म तेरा जोश होने पाए साक़ी।

-अंकित.

आप

आप

बहुत सुने वादे पिछले साठ सालों में सरकारी
वो वादे जिनको निगल गयी भ्रष्टाचार की बीमारी

हो कर त्रस्त आम आदमी ने फिर कमान संभाली
ले हाथ में झाड़ू कस कमर आप पार्टी बना डाली

पुरातनवादी बड़े हँसे बोले है क्या बिसात तुम्हारी
लेकिन हंसने वालों को दी राजधानी में शिकस्त करारी

सत्ताधारी कुछ बौखला गए और कुछ ने चुप्पी धारी
जब पहले ही दिन से होने लगे वादापूर्ति के ऐलान जारी

नए हैं सियासत के खेल में अभी पहली ही है पारी
लेकिन स्वच्छ राजनीति पड़ेगी पापियों पर भारी

भारत का नवनिर्माण है यहाँ चलेगी अब ईमानदारी
आम आदमी से सीख लो नेताजी या जेल जाने की कर लो तय्यारी

-अंकित.

याद

याद

जीवन के महाभारत में,
मैं अर्जुन तो याद सारथी है।

मेरा वर्तमान मेरी यादों से सुधरता है,
फिर भी उसका दामन छोड़ना तो पड़ता है।

नयी यादें बनाने के लिए
हर क्षण जीना पड़ता ही है।

-अंकित.

खुशनुमा ज़िन्दगी

खुशनुमा ज़िन्दगी

बहुत खुशनुमा ज़िन्दगी हुआ करती थी,
कभी ग्यारह कभी बारह बजे नींद खुला करती थी

जब मेरी ज़िन्दगी में तुम आ गयीं,
मेरी रातों की नीद उड़ा गयीं

फिर भी बहुत खुशनुमा ज़िन्दगी हुआ करती थी,
के ख्वाब बिना नींद के आँखें देख लिया करती थीं

उस दिन जब हमारी शादी के लिए तेरी माँ हो गयी राजी,
तेरे बाप ने की खिट-पिट पर मेरे बाप ने मार ली बाज़ी

सर पे पहने सेहरा हो घोडी पर सवार आ गया घर तेरे,
सास ससुर ने रोते हुए किया कन्यादान पड़ गए फेरे

नयी ज़िन्दगी साथ गुजारने के हुए दृड़ जब इरादे,
पंडित ने संस्कृत में करवा दिए अनेक अज्ञात वादे

बहुत रोमांचक मोड़ पे ज़िन्दगी दिखा करती थी,
कभी सात कभी आठ बजे नींद खुला करती थी

बीते कुछ साल तो प्यारी हमारी बिटिया ज़िन्दगी में आ गयी,
इस बार मेरी रातों की नींद उसकी अंखियों में समां गयी

उसके नखरों और अदाओं में वक़्त गुज़र जाता,
कभी हंसती तो मैं हँसता वो रोती तो झुंझला जाता

अब उसकी जीवनी लिखने का ज़िम्मा मिल गया है,
कोई कुछ भी बोले काम कठिन ये भी बड़ा है

मेरे हर जवाब पे सौ नए सवाल खड़े करती है,
आजकल मेरे माथे की नस साफ़ दिखा करती है

उसको स्कूल पहुंचाने की हर सुबह रहती जल्दी है,
कभी पांच कभी छः बजे नींद खुला करती है

फिर भी खुशनुमा ज़िन्दगी बहुत लगती है...
फिर भी खुशनुमा ज़िन्दगी बहुत लगती है...

-अंकित

आगाज़

आगाज़

कहाँ हो बोलो साथी, जवाब दो इस सवाल का
क्यूँ खामोशी की चादर ओढ़े हो, छोड़ो चुप्पी थाम लो दामन यार का।

कभी आवाज़ दो मुझको, कभी मेरा नाम पुकारो तुम,
दूरी सरहदों की भले ही मत तोड़ो, पर दिलों को जोड़ डालो तुम।

रखो विश्वास करो कोशिश, मेरी धड़कन अपने दिल में पा लो तुम
मेरी हर सोच में हो तुम, बस अपनी एक सोच में शामिल मुझको बना लो तुम।

उठाओ आवाज़ तुम अपनी, शामिल स्वयं ही होगा स्वर प्यार का
चिंता मत करो किसी दीवार की, होगा साकार हर सपना मेरे यार का।

अकेला खुद को मत समझो, हूँ हर पल साथ जानो तुम
खुदा के नेक बन्दे हो, कभी ना हार मानो तुम।

-अंकित.