कवितायेँ¶
तुम्हारी याद
तुम्हारी याद
तुम्हारी याद जब आती है,
दिल में एक टीस उठाती है,
मन की शहनाई बजाती है,
और कविता खुद-ब-खुद बन जाती है।
-अंकित.
खुशनुमा ज़िन्दगी
खुशनुमा ज़िन्दगी
बहुत खुशनुमा ज़िन्दगी हुआ करती थी,
कभी ग्यारह कभी बारह बजे नींद खुला करती थी
जब मेरी ज़िन्दगी में तुम आ गयीं,
मेरी रातों की नीद उड़ा गयीं
फिर भी बहुत खुशनुमा ज़िन्दगी हुआ करती थी,
के ख्वाब बिना नींद के आँखें देख लिया करती थीं
उस दिन जब हमारी शादी के लिए तेरी माँ हो गयी राजी,
तेरे बाप ने की खिट-पिट पर मेरे बाप ने मार ली बाज़ी
सर पे पहने सेहरा हो घोडी पर सवार आ गया घर तेरे,
सास ससुर ने रोते हुए किया कन्यादान पड़ गए फेरे
नयी ज़िन्दगी साथ गुजारने के हुए दृड़ जब इरादे,
पंडित ने संस्कृत में करवा दिए अनेक अज्ञात वादे
बहुत रोमांचक मोड़ पे ज़िन्दगी दिखा करती थी,
कभी सात कभी आठ बजे नींद खुला करती थी
बीते कुछ साल तो प्यारी हमारी बिटिया ज़िन्दगी में आ गयी,
इस बार मेरी रातों की नींद उसकी अंखियों में समां गयी
उसके नखरों और अदाओं में वक़्त गुज़र जाता,
कभी हंसती तो मैं हँसता वो रोती तो झुंझला जाता
अब उसकी जीवनी लिखने का ज़िम्मा मिल गया है,
कोई कुछ भी बोले काम कठिन ये भी बड़ा है
मेरे हर जवाब पे सौ नए सवाल खड़े करती है,
आजकल मेरे माथे की नस साफ़ दिखा करती है
उसको स्कूल पहुंचाने की हर सुबह रहती जल्दी है,
कभी पांच कभी छः बजे नींद खुला करती है
फिर भी खुशनुमा ज़िन्दगी बहुत लगती है...
फिर भी खुशनुमा ज़िन्दगी बहुत लगती है...
-अंकित
आगाज़
आगाज़
कहाँ हो बोलो साथी, जवाब दो इस सवाल का
क्यूँ खामोशी की चादर ओढ़े हो, छोड़ो चुप्पी थाम लो दामन यार का।
कभी आवाज़ दो मुझको, कभी मेरा नाम पुकारो तुम,
दूरी सरहदों की भले ही मत तोड़ो, पर दिलों को जोड़ डालो तुम।
रखो विश्वास करो कोशिश, मेरी धड़कन अपने दिल में पा लो तुम
मेरी हर सोच में हो तुम, बस अपनी एक सोच में शामिल मुझको बना लो तुम।
उठाओ आवाज़ तुम अपनी, शामिल स्वयं ही होगा स्वर प्यार का
चिंता मत करो किसी दीवार की, होगा साकार हर सपना मेरे यार का।
अकेला खुद को मत समझो, हूँ हर पल साथ जानो तुम
खुदा के नेक बन्दे हो, कभी ना हार मानो तुम।
-अंकित.
दर्द, दोस्ती और दुआ
दर्द, दोस्ती और दुआ
नहीं बोलता कुछ क्यूँ
बड़ा खामोश बैठा क्यूँ
ये वो सोचता होगा
जो नहीं जानता होगा
तेरी ख़ामोशी को
मैं हर तरह से समझता हूँ
तेरे ग़म में मैं हूँ शामिल
तेरी खातिर कबसे तड़पता हूँ
बहुत करता हूँ कोशिश
तुझे खुश देख पाने की
बड़ा विशवास करता हूँ
फिर सुबह के लौट आने की
है तेरा दर्द
मेरे दिल का नासूर मेरे दोस्त
मिठे हर तकलीफ अब तेरी
खुदा से बस यही फ़रियाद करता हूँ
-अंकित।
ये खबर लगती है
ये खबर लगती है
ये खबर लगती है
सुबह की हवा में घुले फूलों कि खुशबु की तरह
दिन भर की थकान मिटा देने वाली उस मुस्कान की तरह
रात के झींगुर की आवाज़ वाली लोरी की तरह
ये खबर लगती है
बरखा के पानी में मिले जल अमृत के चमत्कार की तरह
सांझ की धूल में मिले बच्चों के उत्साह की तरह
गर्मी की कड़कती धूप में बरगद की छांव की तरह
ये खबर लगती है
दिल की धड़कन में बसे दो प्रेमियों के प्रेम की तरह
तेरे होने के अहसास में मिलने वाली राहत की तरह
मेरे मीत को मेरे गीत में मेरी प्रीत के होते आभास की तरह
-अंकित.
मिस्टर यूनिवर्स
मिस्टर यूनिवर्स
हमसे एक पुराने मित्र ने पूछा क्या काम चल रहा है,
हमने कहा भाई ऑफिस में हैं आराम चल रहा है।
उसने पुछा क्या अभी भी है बॉडी-बिल्डिंग का वो शौक पुराना,
हमने कहा अब हम मिस्टर यूनिवर्स हैं बदल चुका है ज़माना।
हमारे दोस्त पहले हँसे फिर मुस्कुराए,
फिर असमंजस में आये और पुछा कैसे।
हमने कहा समझाते हैं, प्यार से बताते हैं,
गुत्थी ये सुलझाते हैं, ज्ञानबोध करवाते हैं ।
भाई हमारी बीवी का नाम "सुष्मिता " है,
और वो "Nature" की बड़ी "Sane" हैं।
यानी मिस यूनिवर्स की तरह वो भी "सुष्मिता सेन" हैं,
प्रॉपर नाउन है अत: स्पेलिंग डाउन है।
फरक इतना है को हमारी वाइफ है,
इसलिए मिस की जगह मिस्सेस उनकी लाइफ है।
अब हम उनके शौहर हैं तो जग ज़ाहिर है हम मिस्टर हैं,
वो हमारी मिसेस यूनिवर्स और हम उनके मिस्टर यूनिवर्स हैं।
-अंकित।