कवितायेँ¶
आशिकी !!!
आशिकी
कुछ ऐसा मिला मुक्कद्दर, मेरी आशिकी को,
मैं डूबता सूरज, आशिकी सुहाना मंज़र, और सागर का साहिल मेरे वो.
आशिकी का बनाते जाना, बेहद खूबसूरत नज़ारा मानो,
थमते जाना हर शख्स की साँसे, फिर उनकी सिसकियाँ जानो.
मेरी आशिकी का पिघल जाना, और बना देना सुनहरा अम्बर दीवाने को,
उनके आंसुओं का घुल के बना देना, नमकीन सागर के पानी को.
चले जाना दिला के एहसास, अपने होने का यूँ सब को,
भुला पाना जो हो मुश्किल, मेरी आशिकी का फ़साना वो.
अंकित.
नहीं मिलता !!!
नहीं मिलता
मिला पंडित मिला काजी
लेकिन बस खुदा मुझको नहीं मिलता ...
जो मिल जाए तो मैं पूछूँ तेरी रचना में ढूंढो तो
सिवा इंसानों के कभी कुछ भी गलत क्यूँ कर नहीं मिलता ...
क्यूँ तू अपने ही बन्दों से अपने ही बन्दों का अहित कराता है
बहुत ढूंढता हूँ मैं इसका कोई कारण नहीं मिलता ...
मिला फूल और मिला मुझे मैल गंगा में
जो ढूँढ़ते हैं सब वो जल अमृत नहीं मिलता ...
मिले हज यात्री और तीर्थ यात्री मुझको
लेकिन जो जाने तेरी चाहत को
जो माने तेरी हुकूमत को
कोई ऐसा पथिक नहीं मिलता ...
तेरी धरती को सभी से दर्द और तिरस्कार मिलता है
इस सुन्दर निर्माण को तेरे क्यूँ कभी आभार नहीं मिलता ...
अगर ढूंढो बहुत खोजो तो शायद रब भी मिलता है,
नहीं मिलता तो बस उसका बनाया हुआ
एक सच्चा इन्सान नहीं मिलता ...
-अंकित.
जीवन शक्ति
जीवन शक्ति
है अभिलाषा की आसमान में उड़ पाऊँ,
है अभिलाषा की सितारों को छू पाऊँ.
बस जिंदगी कभी पर बढ़ने नहीं देती,
कभी वो एक अंतिम जरूरी स्पर्श होने नहीं देती.
शिकायत तुझसे नहीं फिर भी जिंदगी, क्यूँ कि ...
हर सुबह मेरी चाहत मेरे प्यार को,
मेरे सुन्दर सुखी संसार को,
नज़रों से ओझल तू होने नहीं देती.
इस उपलब्धि के सामने छोटी मेरी हर अभिलाषा है,
तेरी देन मेरी हर निराशा में जैसे भरती आशा है.
कोशिश करना मेरा स्वभाव बना जाता है,
इस अग्नि को करती है जो प्रज्वल्लित,
उस अद्भुत अज्ञात जीवन शक्ति के सामने,
ये शीश झुका जाता है.
-अंकित
मेरा दोस्त !!!
मेरा दोस्त
है खूबसूरत दास्तान मेरी यारी की,
है अभी भी याद छोटी बड़ी बातें जो सारी की.
ये फसाना है दो दोस्तों के साथ का उनके प्यार का,
दो इंसानों का , उनके बीते लम्हों का, उनकी तकरार का.
बहुत याद आते हैं वो पल जब हम दोनों साथ हुआ करते थे
चाहे हो पढाई या आवारगी सब साथ किया करते थे.
उमर कम थी लेकिन करते थे जो मन में ठानी थी
लड़कपन था , नादानी थी कभी शराफत कभी शैतानी थी.
समय का पहिया चलता गया रास्ता बढ़ता गया
दूर दोस्त होता गया जिंदगी का सफ़र अलग तय होता गया.
दोस्त मेरा दूर है लेकिन दिल के पास है,
मेरी यादों में उसका हर पल एक एहसास है.
इन दूरियों को मिटाने का अवसर अगर मिल जाए तो,
वो पुराना बेबाक अंदाज़ फिर मैं मांग लूं.
अपने दोस्त के साथ दोबारा जीने के लिए,
मैं खुदा से भी झगडा जान लूं.
और सुनो , है यकीन की गर वो मेरे साथ हो, खुदा को भी उलझन में बस मैं डाल दूं.
है खूबसूरत दास्तान मेरी यारी की,
है अभी भी याद छोटी बड़ी बातें जो सारी की.
-अंकित
पैसा और ईमान
पैसा और ईमान
किताबों में पढ़ा है जिसके पास ईमान नहीं वो इंसान नहीं,
जीवन भर देखा और सुना है बिन पैसे, रुतबा और शान नहीं.
है गरीब कौन जिसके पास पैसा नहीं या जिसके पास ईमान नहीं ?
ईमान को पैसा खरीद लेता है तो क्या पैसा भगवान् नहीं ?
है अगर पैसा भगवान् तो क्या पैसे वाला ज्यादा बलवान नहीं ?
गरीब का हर पल होते शोषण देखा है, यकीनन गरीब बलवान नहीं.
जिसके पास ना पैसा हो ना ईमान क्या उसको बुलाता रंक हर इंसान नहीं ?
रंक ना बलवान है ना उसकी अपनी कोई पहचान है क्या सच में वो इंसान नहीं ?
सोचा क्या फ़कीर और रंक इस परिभाषा से सामान नहीं ?
या फ़कीर के पास वो ईमान है जिसका कोई खरीदार नहीं ?
फिर फ़कीर गरीब हो या ना हो रंक का किरदार नहीं .
एक पहलु और है देखो, सुना है पैसे का कोई ईमान नहीं
अगर ऐसा है तो पैसा बिना ईमान के भगवान् नहीं
पैसा ईमान खरीद सकता है लेकिन हर ईमान सामान नहीं
क्या जो ईमान बना दे पैसे को भगवान् वो कभी बिकाऊ नहीं ?
तो क्या फ़कीर के ईमान का खरीददार तो है लेकिन वो बस बिकाऊ नहीं ?
तो क्या हर वो ईमान जो बिका नहीं बस एक चमत्कार नहीं ?
मानो ये सच है तो क्या फिर ईमान पैसे से बड़ा पुरस्कार नहीं ?
बहुत कठिन हैं ये सारे सवाल , दुनिया का चलन समझ पाना आसान नहीं.
-अंकित
किस तौर !!!
किस तौर
ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए तेरे गम को किस तौर अब छुपाया जाए
चेहरे की उलझन कोई अफ़साने ना सुनाने पाए ना आँख हो गीली और एक अश्क ना बहने पाए
जागे अरमान हैं किस तौर अब सुलाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
हर दर्द रखा सबकी नज़रों से बचाए लेकिन हर लम्हा वो खुद मुझको नज़र आये
उस सूरत को किस तौर अब हटाया जाए जीवन की इस प्यास को किस तौर अब बुझाया जाए
उनकी याद को किस तौर अब मिटाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
झूठी हंसी में कहीं दर्द ना उबलने पाए है कोशिश तो यही आँख से आंसू ना निकलने पाए
नाज़ुक हालत हैं कोई जज़्बात ना चमक जाए पैमाना इतना ना भरे की चल से छलक जाए
गिरती हुई किस्मत को किस तौर अब उठाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
बिगड़ी सूरत को किस तौर अब बनाया जाए थमी है जिंदगानी किस तौर अब चलाया जाए
रंग चेहरे पर ना और कोई चढाया जाए कैसे विष को दवा ना बनाया जाए
ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए तेरे गम को किस तौर अब छुपाया जाए
-अंकित.
नया जहाँ !!!
नया जहाँ
क्यूँ आज हर मोड़ पैर छाए इतने हैं वीराने
क्यूँ ख्वाब बनते जा रहे हैं फ़साने
क्यूँ हर मोड़ पे जलते दिखे हैं आशियाने
क्यूँ अपने भी दिखाई पड़ते हैं बेगाने
कौन सी दुनिया है वो जहाँ खुले हैं मौत के वो कारखाने
कौन हैं ये लोग जो रखते हैं हर इंसान को अपने निशाने
कौन से खौफ के हाथों रखे हैं गिरवी ख़ुशी के वो खजाने
कौन हैं वो जिसने मेरी ज़मीन में किये इतने बेगुनाह दफ़न न जाने
कर दो ख़तम दहशतगर्दी का ये दौर के अब बुलाने हैं हसीं वो ज़माने
कर लो बहाल इंसानियत का वो तौर अब बढा लो कदम मिलने मिलाने
कर दो सारी ख़तम वो रंजिशें के अब हो शुरू सब शिकवे भूलने भुलाने
कर लो वादा भूलने हैं वो बहाने के अब हम चले हैं नया जहाँ बनाने
-अंकित.