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भावनात्मक

दर्द

दर्द

नहीं दर्द का एहसास अब मुझको,
की लो अब दोस्ती दर्द से मैने बना ली है।

है कौनसा दुःख तुम बोलो,
मेरी पुरानी उस से यारी है।

मेरी सिफारिश शायद काम कर जाए,
बता दो क्या मायूसी तुम्हारी है।

-अंकित.

आशिकी !!!

आशिकी

कुछ ऐसा मिला मुक्कद्दर, मेरी आशिकी को,
मैं डूबता सूरज, आशिकी सुहाना मंज़र, और सागर का साहिल मेरे वो.

आशिकी का बनाते जाना, बेहद खूबसूरत नज़ारा मानो,
थमते जाना हर शख्स की साँसे, फिर उनकी सिसकियाँ जानो.

मेरी आशिकी का पिघल जाना, और बना देना सुनहरा अम्बर दीवाने को,
उनके आंसुओं का घुल के बना देना, नमकीन सागर के पानी को.

चले जाना दिला के एहसास, अपने होने का यूँ सब को,
भुला पाना जो हो मुश्किल, मेरी आशिकी का फ़साना वो.

अंकित.

किस तौर !!!

किस तौर

ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए तेरे गम को किस तौर अब छुपाया जाए
चेहरे की उलझन कोई अफ़साने ना सुनाने पाए ना आँख हो गीली और एक अश्क ना बहने पाए

जागे अरमान हैं किस तौर अब सुलाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
हर दर्द रखा सबकी नज़रों से बचाए लेकिन हर लम्हा वो खुद मुझको नज़र आये

उस सूरत को किस तौर अब हटाया जाए जीवन की इस प्यास को किस तौर अब बुझाया जाए
उनकी याद को किस तौर अब मिटाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए

झूठी हंसी में कहीं दर्द ना उबलने पाए है कोशिश तो यही आँख से आंसू ना निकलने पाए
नाज़ुक हालत हैं कोई जज़्बात ना चमक जाए पैमाना इतना ना भरे की चल से छलक जाए

गिरती हुई किस्मत को किस तौर अब उठाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
बिगड़ी सूरत को किस तौर अब बनाया जाए थमी है जिंदगानी किस तौर अब चलाया जाए

रंग चेहरे पर ना और कोई चढाया जाए कैसे विष को दवा ना बनाया जाए
ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए तेरे गम को किस तौर अब छुपाया जाए

-अंकित.

घोंसला !!!

घोंसला

तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...
चल जाती है फिर पुरवाई मैं बेबस रह जाती हूँ ...

नही झिझकती पल भर को भी फिर श्रम में लग जाती हूँ ...
पुरवा अपना काम करे है मैं अपना कर पाती हूँ ....

जब तक ना हो सम्पूर्ण घोंसला, रहे अभाव सुरक्षा का, नींद कहाँ ले पाती हूँ ...
पुरवा निभाती है कर्म अपना मैं अपना धर्म निभाती हूँ ...

सीख लिया था पिछली बार जो उस से मजबूत बनाती हूँ ...
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...

-अंकित.

लेकिन !!!

लेकिन

भूल जाना तुझे मुमकिन तो नहीं,
लेकिन नामुमकिन को हकीकत करना तेरे लिए नयी अदा भी तो नही!!!

हो बहुत दूर लेकिन इस दिल से जुदा तो नही,
लेकिन फिर मैं कोई खुदा भी तो नही!!

तुझ से रूठना मेरी आदत तो नही,
लेकिन इसके सिवा मेरे पास कोई ताक़त भी तो नही !!!

उन साथ गुजारे लम्हों कि पास मेरे कोई निशानी तो नही,
लेकिन तेरे साथ कि आस बेमानी तो नही !!!

मेरी दोस्ती पुकारती है पर तू आता ही नही,
लेकिन क्या करूं इस दिल का जो और कुछ माँगता ही नहीं !!

ऐ मेरे दोस्त तेरी याद से आंखें भर आई,
लेकिन आंख के पानी से यादें धुन्धलायीं तो नहीं !!!

-अंकित

याद !!!

याद

बार बार आते हैं नज़र
तेरे साथ बीते पल और उनका असर

सुनाई देता था कविता सा सुखद सुन्दर
मैं आज जो दिखता हूँ बिखरा हुआ एक अक्षर

मौन मौन सा रहता है मन अक्सर
जब तड़पाती है तेरी याद हमसफ़र

पर पर मिलते जो मुझे, उड़ आता मैं उस शिखर
जिसकी ऊंचाइयों में समां गयी, तू हो गयी मेरी यादों सी अमर

-अंकित ।

जुदाई !!!

जुदाई

मेरी कहानी में था दर्द इतना,
सुन के पत्थर भी करहा से गए.

मेरी आंखो में था खौफ इतना,
देख के आंसू भी घबरा से गए.

इतना हुआ तनहा मैं तेरी जुदाई में,
सामने मेरे सन्नाटे भी गुनगुना से गए.

-अंकित

पिता

Pitah is Father.

Father would always give the advice from what has been his experience with life to his child. It is this father who teaches among other things his kid how to deal with situations in life which is the essence of this poem.

A man Is what his Father makes him !!!!!

-Ankit.

पिता

रखना सर को ऊंचा के तुम मेरी पहचान हो ...
सबक सदा ज़हन में ये तुम्हारे विराजमान हो ...

ना करना ऐतबार जबतक चीज़ वो बेजान हो ...
चाहे जाये यारी चाहे जाती शान हो ...

हर चीज़ बिक ही जाती है कपड़ा हो के आन हो...
कीमत लग ही जाती मिटटी हो के जान हो ...

क्या करेगा चन्दा और कितना भी सूरज दिव्यमान हो ...
रहेगा अँधेरा जब घर में ना कोई रौशंदान हो ...

ना सोच के ये सब तू मेरे बच्चे परेशान हो ...
वक़्त बदल ही देता है दुनिया के हर इन्सान को ...

ना मान लेना हार जब तक हाथ में कमान हो ...
राह मिल ही जायेगी जब जीतने का ध्यान हो ...

ना डर के दिखा नीचा खुदा के हर अहसान को ...
मंज़िल ढूँढ ही लेती है उसके हर मेहमान को ...

-अंकित