भावनात्मक¶
पूछ लो काजी से...
पूछ लो काजी से
क्यूँ कहते है खेल नहीं दिल का लगाना बोलो,
दिल तो दीवाना है, क्या इसका ठिकाना बोलो ....
भूलना होगा हर तरीका पुराना हमको,
ढूंढना होगा नया कोई बहाना हमको ....
दुश्मन के सौ वार एक जुदाई से भले होते हैं,
दिल पे निशाना होता है पर टुकड़े तो नहीं होते हैं ....
कोई जा के सुनाये हमारा अफसाना उनको,
बहुत मुश्किल है इस दिल का धडकाना अब तो .....
चले आते हैं बेबाक हमारे ख्यालों में वो,
बीता ज़माना देखे हमारी सूरत की हकीकत जिनको ....
क्या बना सबब आपके जाने का हमें याद नहीं,
हाँ मगर याद है वो आपका आना हमको ....
क्या गुस्ताख थी निगाहें हमको ये याद नहीं,
क्यूँ आपको लगती ज्यादा सजा की ये मियाद नहीं ....
हुआ गायब हमारा हर ख्वाब वो सुहाना ऐसे,
जहन्नुम बन गया हो हमारा ठिकाना जैसे ....
क्या जुबान ने खता की थी इसका तो अहसास नहीं,
लगा आपके जाने के बाद, के पास हमारे सांस नहीं ....
कल आती है आज आ जाए मौत के अब डरना कैसा,
घुट घुट के हम वैसे भी हर रोज मरा करते हैं ....
बुझ रहा है हमारी हस्ती का फ़साना यूँ तो,
सीखना फिर भी होगा साथ का निभाना हमको ....
के इन हाथ की लकीरों में बस वो ही वो दीखते हैं,
पूछ लो काजी से मुक़द्दर तो नहीं बिकते हैं ....
-अंकित
आशिकी !!!
आशिकी
कुछ ऐसा मिला मुक्कद्दर, मेरी आशिकी को,
मैं डूबता सूरज, आशिकी सुहाना मंज़र, और सागर का साहिल मेरे वो.
आशिकी का बनाते जाना, बेहद खूबसूरत नज़ारा मानो,
थमते जाना हर शख्स की साँसे, फिर उनकी सिसकियाँ जानो.
मेरी आशिकी का पिघल जाना, और बना देना सुनहरा अम्बर दीवाने को,
उनके आंसुओं का घुल के बना देना, नमकीन सागर के पानी को.
चले जाना दिला के एहसास, अपने होने का यूँ सब को,
भुला पाना जो हो मुश्किल, मेरी आशिकी का फ़साना वो.
अंकित.
किस तौर !!!
किस तौर
ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए तेरे गम को किस तौर अब छुपाया जाए
चेहरे की उलझन कोई अफ़साने ना सुनाने पाए ना आँख हो गीली और एक अश्क ना बहने पाए
जागे अरमान हैं किस तौर अब सुलाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
हर दर्द रखा सबकी नज़रों से बचाए लेकिन हर लम्हा वो खुद मुझको नज़र आये
उस सूरत को किस तौर अब हटाया जाए जीवन की इस प्यास को किस तौर अब बुझाया जाए
उनकी याद को किस तौर अब मिटाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
झूठी हंसी में कहीं दर्द ना उबलने पाए है कोशिश तो यही आँख से आंसू ना निकलने पाए
नाज़ुक हालत हैं कोई जज़्बात ना चमक जाए पैमाना इतना ना भरे की चल से छलक जाए
गिरती हुई किस्मत को किस तौर अब उठाया जाए ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए
बिगड़ी सूरत को किस तौर अब बनाया जाए थमी है जिंदगानी किस तौर अब चलाया जाए
रंग चेहरे पर ना और कोई चढाया जाए कैसे विष को दवा ना बनाया जाए
ऐ दिल किस तौर अब उनको भुलाया जाए तेरे गम को किस तौर अब छुपाया जाए
-अंकित.
घोंसला !!!
घोंसला
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...
चल जाती है फिर पुरवाई मैं बेबस रह जाती हूँ ...
नही झिझकती पल भर को भी फिर श्रम में लग जाती हूँ ...
पुरवा अपना काम करे है मैं अपना कर पाती हूँ ....
जब तक ना हो सम्पूर्ण घोंसला, रहे अभाव सुरक्षा का, नींद कहाँ ले पाती हूँ ...
पुरवा निभाती है कर्म अपना मैं अपना धर्म निभाती हूँ ...
सीख लिया था पिछली बार जो उस से मजबूत बनाती हूँ ...
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर मैं घर-बार सजाती हूँ ...
-अंकित.
लेकिन !!!
लेकिन
भूल जाना तुझे मुमकिन तो नहीं,
लेकिन नामुमकिन को हकीकत करना तेरे लिए नयी अदा भी तो नही!!!
हो बहुत दूर लेकिन इस दिल से जुदा तो नही,
लेकिन फिर मैं कोई खुदा भी तो नही!!
तुझ से रूठना मेरी आदत तो नही,
लेकिन इसके सिवा मेरे पास कोई ताक़त भी तो नही !!!
उन साथ गुजारे लम्हों कि पास मेरे कोई निशानी तो नही,
लेकिन तेरे साथ कि आस बेमानी तो नही !!!
मेरी दोस्ती पुकारती है पर तू आता ही नही,
लेकिन क्या करूं इस दिल का जो और कुछ माँगता ही नहीं !!
ऐ मेरे दोस्त तेरी याद से आंखें भर आई,
लेकिन आंख के पानी से यादें धुन्धलायीं तो नहीं !!!
-अंकित