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भावनात्मक

माज़रा

माज़रा

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

क्या कुछ बात फिर से हमारी यूँ हो सी रही है ,
यूँ ही बेमतलब बेवजह बहाने तो कोई बनाता नहीं है।

कैसे आपकी शांत शख्सियत फिर गुनगुनाने लगी है,
यूँ ही आपको पुरानी मेरी आदत कोई गुदगुदाने लगी है।

हमेशा रूठे रहे जो हमसे वो अब वापस आने लगे हैं,
यूँ तो यकीं होता नहीं पर शायद दुआ कोई रंग लाने लगी है।

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

-अंकित.

सीख

सीख

वो रिश्ते ही क्या जो किसी चीज़ के मोहताज़ हो जाएं
मशरूफ हम इतने भी नहीं की गिले शिकवे राज़ हो जाएं

कितना किसे मिलेगा इस धरती पर न इसका नाज़ हो जाए
करोगे क्या तुम उस नैमत से जरा इसकी भी लाज हो जाए

है सीख मेरे निर्माता की जो करे कर्म वो जांबाज़ हो जाये
है जुनूँ वो जांबाज़ होने का,तो या वो सच आज हो जाये

या फिर ऍ ख़ुदा मेरा भी कुछ इलाज़ हो जाये

-अंकित.

मैं

मैं

अपना अक्स जिसमे दिखे वो आइना बना दिया
हालात ने मुझको इतना कमीना बना दिया

पत्थर को जो तोड़े वो लोहा बना दिया
वक़्त की तपिश ने मुझे हथौड़ा बना दिया

चीर दे जो अँधेरे को वो जुगनू बना दिया
खुदा ने दिखने में मामूली एक कीड़ा बना दिया

सभी को जो चुभ जाए वो काँटा बना दिया
कुदरत ने मुझे गुलाब का पहरेदार बना दिया

बहुत सोचा बड़ा पूछा तो किसी ने जता दिया
बना के चाँद उनको मुझे चाँद का दाग बना दिया

-अंकित.

आगाज़

आगाज़

कहाँ हो बोलो साथी, जवाब दो इस सवाल का
क्यूँ खामोशी की चादर ओढ़े हो, छोड़ो चुप्पी थाम लो दामन यार का।

कभी आवाज़ दो मुझको, कभी मेरा नाम पुकारो तुम,
दूरी सरहदों की भले ही मत तोड़ो, पर दिलों को जोड़ डालो तुम।

रखो विश्वास करो कोशिश, मेरी धड़कन अपने दिल में पा लो तुम
मेरी हर सोच में हो तुम, बस अपनी एक सोच में शामिल मुझको बना लो तुम।

उठाओ आवाज़ तुम अपनी, शामिल स्वयं ही होगा स्वर प्यार का
चिंता मत करो किसी दीवार की, होगा साकार हर सपना मेरे यार का।

अकेला खुद को मत समझो, हूँ हर पल साथ जानो तुम
खुदा के नेक बन्दे हो, कभी ना हार मानो तुम।

-अंकित.

दर्द, दोस्ती और दुआ

दर्द, दोस्ती और दुआ

नहीं बोलता कुछ क्यूँ
बड़ा खामोश बैठा क्यूँ
ये वो सोचता होगा
जो नहीं जानता होगा

तेरी ख़ामोशी को
मैं हर तरह से समझता हूँ
तेरे ग़म में मैं हूँ शामिल
तेरी खातिर कबसे तड़पता हूँ

बहुत करता हूँ कोशिश
तुझे खुश देख पाने की
बड़ा विशवास करता हूँ
फिर सुबह के लौट आने की

है तेरा दर्द
मेरे दिल का नासूर मेरे दोस्त
मिठे हर तकलीफ अब तेरी
खुदा से बस यही फ़रियाद करता हूँ

-अंकित।

ये खबर लगती है

ये खबर लगती है

ये खबर लगती है
सुबह की हवा में घुले फूलों कि खुशबु की तरह
दिन भर की थकान मिटा देने वाली उस मुस्कान की तरह
रात के झींगुर की आवाज़ वाली लोरी की तरह

ये खबर लगती है
बरखा के पानी में मिले जल अमृत के चमत्कार की तरह
सांझ की धूल में मिले बच्चों के उत्साह की तरह
गर्मी की कड़कती धूप में बरगद की छांव की तरह

ये खबर लगती है
दिल की धड़कन में बसे दो प्रेमियों के प्रेम की तरह
तेरे होने के अहसास में मिलने वाली राहत की तरह
मेरे मीत को मेरे गीत में मेरी प्रीत के होते आभास की तरह

-अंकित.

कारण !!!

कारण

बड़ा मौन बैठा था ,सभी आसान दिखता था,
की नहीं सोचता जब कुछ तो लिखता नहीं हूँ मैं।

मुझे सोचने पर कर दिया मजबूर दुनिया ने,
अब लिख रहा हूँ, नहीं रुक पा रहा हूँ मैं।

आज मेरे अन्दर का कवी जागा हुआ है,
सारे ज़माने का खौफ़ मुझसे भागा हुआ है।

बसेरा मेरा कुछ इस तरह जगमगाया हुआ है,
हर शख्स मेरे मोहल्ले का शरमाया हुआ है।

चंदा आसमान में यूँ छाया हुआ है,
हर तारा अपने वजूद पर चकराया हुआ है।

अक्सर मैं छुपता हूँ जिस ज़माने से,
आज ज़माना वही मुझसे घबराया हुआ है।

-अंकित.

शिकायत !!!

शिकायत

बड़े दिन हुए सरकार की झलक दिखी नहीं,
भुला बैठे वो हमें, या फुर्सत मिली नहीं?

माना नए दोस्त की है दोस्ती बहुत प्यारी,
पर पुराने यारोँ से भी रहे मुलाक़ात ज़ारी।

गर दिया शिकायत का मौका तो लगेगा सौबत सही नहीं,
के नए के लिए पुराने को भुला देना आदत भली नहीं।

-अंकित.

मेरी माँ

मेरी माँ

सूर्य पवन जल अम्बर और धरती - इन सबको जो नतमस्तक कर दे
दुःख, दर्द, तनाव और निराशा - इन सब को जो मिथ्या कर दे
है वो सच्चाई मेरी माँ

जिसके त्याग से संभव हूँ मैं
जिसके श्रम की मूरत हूँ मैं 
है वो सच्चाई मेरी माँ

सुखद स्मृति मेरा बचपन
मेरी हर हठ जिसका जीवन
है वो सच्चाई मेरी माँ

ताप करे शीतल नरम हथेली की जो शक्ति
जिसके ज्ञान की मैं हूँ अभिव्यक्ति
है वो सच्चाई मेरी माँ

बिना कहे ही जो सब सुन ले
उधडे रिश्तों को जो सिल दे
है वो सच्चाई मेरी माँ

सुख मेरा जिसको हर्षाये
दुःख मेरा जिसके नयन तराये
है वो सच्चाई मेरी माँ

जिसके अंक में है नहीं गणित
जिसके मन मैं हर पल अंकित
है वो सच्चाई मेरी माँ

सूर्य पवन जल अम्बर और धरती - इन सबको जो नतमस्तक कर दे
दुःख, दर्द, तनाव और निराशा - इन सब को जो मिथ्या कर दे
है वो सच्चाई मेरी माँ

-अंकित.

आवाज़ !!!

आवाज़

बहुत उदास हूँ, बड़ा हताश हूँ
आज मेरे दोस्त
ज़िन्दगी बेबुनियाद लगती है,
आज मेरे दोस्त

हिम्मत की कमी लगती है,
मन विचलित और घुटन लगती है
आज मेरे दोस्त

ज़िन्दगी बड़ी नीरस लगती है
आज मेरे दोस्त

हर सोच हारी हुई और
हर सांस भारी सी लगती है
आज मेरे दोस्त

मरने के सौ बहाने दीखते हैं
पर जीने की एक ख्वाहिश नहीं दिखती
आज मेरे दोस्त

काली रात की सुबह नहीं दिखेगी,
अँधेरी गुफा है और रौशनी नहीं मिलेगी
क्यूँ ऐसा लगता है
तुझसे आखरी एक मुलाक़ात
न हो सकेगी मेरे दोस्त

ख़ुशी तो भूल चुका हूँ
लेकिन हार अभी स्वीकार नहीं
मुझे संभाल ले तू आ कर
या कह दे मेरी दरकार नहीं तुझे
आज मेरे दोस्त...

-अंकित.