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भावनात्मक

मुस्कुराहट

मुस्कुराहट

मुस्कुराने का जब सबब पूछा था मेरे यार ने,
बुरा लगा होगा सोच के क्या कमी थी प्यार में।

अग्नि जो दिल में लगा दी थी याद की पुकार ने,
आंख भर आती किसी की भी उस धुंए के गुबार में।

जब तक खुद चाहा ना हो परवरदिगार ने,
एक पत्ता तक तो हिलता नहीं संसार में।

दिया दिल टूटने का अहसास जब मुझे काल ने,
मुस्कुराहट तो बस ढली मेरे अश्रुओं की ढाल में।

प्यार करना आसान है बस समझा नहीं इंसान ने,
दर्द को परिभाषित किया मुस्कुराहट की ज़ुबान में।

-अंकित.

पतन

पतन

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
कल पर चढ़ा हुआ कफन आज मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
तेरी बेइज़्ज़ती का दफन आज मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
नासमझ कौन कितना इस तर्क का विराम मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
हम से मैं और तू तक का सफर मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
झूठे रिश्तों के निभाने के चलन की विदाई मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
तेरे बिछड़े सुख चैन का तुझे मिलन मुबारक है।

मेरा पतन मुझे आज मुबारक है,
दूर की दुआ सलाम का तुझे सिलसिला मुबारक है।

-अंकित.

माज़रा

माज़रा

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

क्या कुछ बात फिर से हमारी यूँ हो सी रही है ,
यूँ ही बेमतलब बेवजह बहाने तो कोई बनाता नहीं है।

कैसे आपकी शांत शख्सियत फिर गुनगुनाने लगी है,
यूँ ही आपको पुरानी मेरी आदत कोई गुदगुदाने लगी है।

हमेशा रूठे रहे जो हमसे वो अब वापस आने लगे हैं,
यूँ तो यकीं होता नहीं पर शायद दुआ कोई रंग लाने लगी है।

यूँ की माज़रा है क्या ये कोई समझाता नहीं है,
यूँ ही भूली हुई याद कोई वापस बुलाता नहीं है।

-अंकित.

सीख

सीख

वो रिश्ते ही क्या जो किसी चीज़ के मोहताज़ हो जाएं
मशरूफ हम इतने भी नहीं की गिले शिकवे राज़ हो जाएं

कितना किसे मिलेगा इस धरती पर न इसका नाज़ हो जाए
करोगे क्या तुम उस नैमत से जरा इसकी भी लाज हो जाए

है सीख मेरे निर्माता की जो करे कर्म वो जांबाज़ हो जाये
है जुनूँ वो जांबाज़ होने का,तो या वो सच आज हो जाये

या फिर ऍ ख़ुदा मेरा भी कुछ इलाज़ हो जाये

-अंकित.

मैं

मैं

अपना अक्स जिसमे दिखे वो आइना बना दिया
हालात ने मुझको इतना कमीना बना दिया

पत्थर को जो तोड़े वो लोहा बना दिया
वक़्त की तपिश ने मुझे हथौड़ा बना दिया

चीर दे जो अँधेरे को वो जुगनू बना दिया
खुदा ने दिखने में मामूली एक कीड़ा बना दिया

सभी को जो चुभ जाए वो काँटा बना दिया
कुदरत ने मुझे गुलाब का पहरेदार बना दिया

बहुत सोचा बड़ा पूछा तो किसी ने जता दिया
बना के चाँद उनको मुझे चाँद का दाग बना दिया

-अंकित.

आगाज़

आगाज़

कहाँ हो बोलो साथी, जवाब दो इस सवाल का
क्यूँ खामोशी की चादर ओढ़े हो, छोड़ो चुप्पी थाम लो दामन यार का।

कभी आवाज़ दो मुझको, कभी मेरा नाम पुकारो तुम,
दूरी सरहदों की भले ही मत तोड़ो, पर दिलों को जोड़ डालो तुम।

रखो विश्वास करो कोशिश, मेरी धड़कन अपने दिल में पा लो तुम
मेरी हर सोच में हो तुम, बस अपनी एक सोच में शामिल मुझको बना लो तुम।

उठाओ आवाज़ तुम अपनी, शामिल स्वयं ही होगा स्वर प्यार का
चिंता मत करो किसी दीवार की, होगा साकार हर सपना मेरे यार का।

अकेला खुद को मत समझो, हूँ हर पल साथ जानो तुम
खुदा के नेक बन्दे हो, कभी ना हार मानो तुम।

-अंकित.

दर्द, दोस्ती और दुआ

दर्द, दोस्ती और दुआ

नहीं बोलता कुछ क्यूँ
बड़ा खामोश बैठा क्यूँ
ये वो सोचता होगा
जो नहीं जानता होगा

तेरी ख़ामोशी को
मैं हर तरह से समझता हूँ
तेरे ग़म में मैं हूँ शामिल
तेरी खातिर कबसे तड़पता हूँ

बहुत करता हूँ कोशिश
तुझे खुश देख पाने की
बड़ा विशवास करता हूँ
फिर सुबह के लौट आने की

है तेरा दर्द
मेरे दिल का नासूर मेरे दोस्त
मिठे हर तकलीफ अब तेरी
खुदा से बस यही फ़रियाद करता हूँ

-अंकित।

ये खबर लगती है

ये खबर लगती है

ये खबर लगती है
सुबह की हवा में घुले फूलों कि खुशबु की तरह
दिन भर की थकान मिटा देने वाली उस मुस्कान की तरह
रात के झींगुर की आवाज़ वाली लोरी की तरह

ये खबर लगती है
बरखा के पानी में मिले जल अमृत के चमत्कार की तरह
सांझ की धूल में मिले बच्चों के उत्साह की तरह
गर्मी की कड़कती धूप में बरगद की छांव की तरह

ये खबर लगती है
दिल की धड़कन में बसे दो प्रेमियों के प्रेम की तरह
तेरे होने के अहसास में मिलने वाली राहत की तरह
मेरे मीत को मेरे गीत में मेरी प्रीत के होते आभास की तरह

-अंकित.

कारण !!!

कारण

बड़ा मौन बैठा था ,सभी आसान दिखता था,
की नहीं सोचता जब कुछ तो लिखता नहीं हूँ मैं।

मुझे सोचने पर कर दिया मजबूर दुनिया ने,
अब लिख रहा हूँ, नहीं रुक पा रहा हूँ मैं।

आज मेरे अन्दर का कवी जागा हुआ है,
सारे ज़माने का खौफ़ मुझसे भागा हुआ है।

बसेरा मेरा कुछ इस तरह जगमगाया हुआ है,
हर शख्स मेरे मोहल्ले का शरमाया हुआ है।

चंदा आसमान में यूँ छाया हुआ है,
हर तारा अपने वजूद पर चकराया हुआ है।

अक्सर मैं छुपता हूँ जिस ज़माने से,
आज ज़माना वही मुझसे घबराया हुआ है।

-अंकित.

शिकायत !!!

शिकायत

बड़े दिन हुए सरकार की झलक दिखी नहीं,
भुला बैठे वो हमें, या फुर्सत मिली नहीं?

माना नए दोस्त की है दोस्ती बहुत प्यारी,
पर पुराने यारोँ से भी रहे मुलाक़ात ज़ारी।

गर दिया शिकायत का मौका तो लगेगा सौबत सही नहीं,
के नए के लिए पुराने को भुला देना आदत भली नहीं।

-अंकित.