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प्रेम-रस

तू ...

तू

मेरा प्यार तू मेरी आशिकी,
मेरी साँसों में तू है घुली

मेरी धडकनें , मेरी आरज़ू
मेरी खुशियों में तू है रची

मेरे ख्वाब तू मेरी सोच है
मेरे मन में तेरी मूरत बसी

मेरी जान तू मेरी पहचान है
तेरे बिन मैं क्या ? कुछ भी नहीं ...

मेरे शब्द तू मेरा गीत है ...
बिन तेरे सनम मैं कवी नहीं ...

-अंकित.

करवाचौथ का व्रत

करवाचौथ का व्रत

मेरी दीर्घायू के लिए क्यूँ तू ये कठिन संस्कार करती है ...
जब जानती है मेरी हर ख़ुशी को बस तू ही साकार करती है ...

मेरी दीर्घायू के लिए क्यूँ करवाचौथ का व्रत हर बार करती है ...
जब जानती है मेरी उम्र तो बस तेरे साथ की दरकार करती है ...

-अंकित.

दुआ ...

दुआ

बहुत खुदगर्ज़ होके,
खुदा से ये मांग रखता हूँ ...
जीवनसाथी के जन्मदिन पर मैं,
उसकी खुशनुमा जिंदगी की गुहार करता हूँ ...

ऐ रब जिसकी हर ख़ुशी,
मुझसे हो कर शुरू, मुझ पर ख़तम हो जाती है ...
मैं उसको हर सुख दे पाऊँ, आज बस यही फ़रियाद मैं करता हूँ ...

अंकित.

तुम बिन प्रिये !!!

तुम बिन प्रिये

यदा कदा ये कहता हूँ,
पर सदा सदा मैं देता हूँ.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

चलता फिरता रहता हूँ,
पर रुका रुका रह जाऊँगा.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

ख़ुशी ख़ुशी मैं हँसता हूँ,
पर घुट घुट के मिट जाऊँगा.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

पल पल सफल नहीं हूँ मैं,
पर पग पग बाधा ना सह पाऊँगा.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

दरिया दरिया तो तरता हूँ,
पर मैं दल दल में धंस जाऊँगा.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

शूर वीर सा लड़ता हूँ,
पर तनहा तनहा डर जाऊँगा.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

आज को कल कर देता हूँ,
पर कल काल में मैं फंस जाऊँगा.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

यदा कदा ये कहता हूँ,
पर सदा सदा मैं देता हूँ.
प्रेम विवश हूँ, तुम बिन प्रिये,
मैं जीते जी मर जाऊँगा.

अंकित.

मीत !!!

मीत

तेरे स्वर में बंधे जो मेरे शब्द तो वो गीत है,
तेरे मुख से मेरे कर्ण तक जो पहुंचे वो संगीत है.

मेरे गीत का हर अक्षर मेरी प्रीत का प्रतीक है,
मेरी जीत का तभी अवसर जब मेरे मीत तू नज़दीक है.

-अंकित.

चाहत !!!

चाहत

मेरा हर गीत ना समझ पाओ तो कोई बात नहीं,
मेरा हर अलफ़ाज़ समझ पाने की तुम्हारी चाहत काफी है ।

मेरी आवाज़ हर बार ना सुन पाओ तो कोई बात नहीं,
मेरी हर धड़कन में समाने की तुम्हारी चाहत काफी है ।

मेरा हर कोई ना दे पाए साथ तो कोई बात नहीं,
मेरा हर पल साथ देने की तुम्हारी चाहत काफी है ।

-अंकित

आशिकी !!!

आशिकी

कुछ ऐसा मिला मुक्कद्दर, मेरी आशिकी को,
मैं डूबता सूरज, आशिकी सुहाना मंज़र, और सागर का साहिल मेरे वो.

आशिकी का बनाते जाना, बेहद खूबसूरत नज़ारा मानो,
थमते जाना हर शख्स की साँसे, फिर उनकी सिसकियाँ जानो.

मेरी आशिकी का पिघल जाना, और बना देना सुनहरा अम्बर दीवाने को,
उनके आंसुओं का घुल के बना देना, नमकीन सागर के पानी को.

चले जाना दिला के एहसास, अपने होने का यूँ सब को,
भुला पाना जो हो मुश्किल, मेरी आशिकी का फ़साना वो.

अंकित.