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दो-चार-लाइना

मायूसी

मायूसी

आग ज़हन में इतनी की सूरज को सुलगा दिया
प्यास दिल में इतनी की सागर को सुखा दिया

बेताबी मन में इतनी की मुर्दे को उठा दिया
मायूसी मुझ में इतनी की पत्थर को रुला दिया

-अंकित.

जुदाई ...

जुदाई

बिन तेरे हर लम्हा लगता साल है
कब मिलोगे ये दिल करता सवाल है
क्या कहूं कैसा मेरा हाल है

हो तुम दूर तो
भीगी अंखियाँ और भीगे गाल हैं
बस बिखरे हुए शब्द ना सुर ना ताल है

-अंकित.

करवाचौथ का व्रत

करवाचौथ का व्रत

मेरी दीर्घायू के लिए क्यूँ तू ये कठिन संस्कार करती है ...
जब जानती है मेरी हर ख़ुशी को बस तू ही साकार करती है ...

मेरी दीर्घायू के लिए क्यूँ करवाचौथ का व्रत हर बार करती है ...
जब जानती है मेरी उम्र तो बस तेरे साथ की दरकार करती है ...

-अंकित.