दो-चार-लाइना¶
हसीन लम्हा ...
हसीन लम्हा
समय से चुरा लिया लम्हा एक हंसीन मैंने
भुला के सारे ग़म बस बना दिया एक पल रंगीन मैंने
-अंकित.
हम पागल हैं ???
हम पागल हैं ???
बुला के पागल हमें
क्यूँ पागलों का अपमान करते हो?
हकीकत जानते नहीं
या बयां करने से डरते हो?
हम पागलों से
एक डिग्री उप्पर रहते हैं.
तभी तो तुमको अपना
जिगरी दोस्त कहते हैं.
-अंकित
दीवाना
उस शख्स के बारे में जिसके लिए यह कविता कही गयी है:
जलती है शम्मा तो परवाने आ ही जाते हैं,
चलती है तू लहरा के तो दीवाने आ ही जाते हैं !!!
-अंकित
दीवाना
दीवाना हूँ मैं तेरे बिना जीं नहीं सकता,
तू है वो ख़्वाब कि जिसे में भुला नहीं सकता
परवाना हूँ मैं जलने कि किस्मत बदलवा नहीं सकता,
तू है वो गीत जिसे होंठों से जुदा करा नहीं सकता
पैमाना हूँ मैं ऐसा के आंखों से छलका नहीं सकता,
तू है जिंदगी का वो रंग जिसे मैं हल्का करा नहीं सकता
बेगाना हूँ मैं जिसे सिवा तेरे कोई अपना नहीं सकता,
तू है अंकित इस दिल में तुझे मैं हरगिज़ मिटा नही सकता
-अंकित