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दो-चार-लाइना

राज़

राज़

कई राज़ दिल की गहराई में छुपा के रख्खे थे,
हर राज़ को तेरी आँखों ने बेपर्दा कर दिया।

तूने जुबान पर कितना पहरा बिठाया था,
आँख के चोर दरवाज़े से फिर भी आंसू निकल गए।

-अंकित.

दर्द

दर्द

नहीं दर्द का एहसास अब मुझको,
की लो अब दोस्ती दर्द से मैने बना ली है।

है कौनसा दुःख तुम बोलो,
मेरी पुरानी उस से यारी है।

मेरी सिफारिश शायद काम कर जाए,
बता दो क्या मायूसी तुम्हारी है।

-अंकित.

हम पागल हैं ???

हम पागल हैं ???

बुला के पागल हमें
क्यूँ पागलों का अपमान करते हो?
हकीकत जानते नहीं
या बयां करने से डरते हो?  

हम पागलों से
एक डिग्री उप्पर रहते हैं. 
तभी तो तुमको अपना
जिगरी दोस्त कहते हैं.

-अंकित

जुदाई !!!

जुदाई

मेरी कहानी में था दर्द इतना,
सुन के पत्थर भी करहा से गए.

मेरी आंखो में था खौफ इतना,
देख के आंसू भी घबरा से गए.

इतना हुआ तनहा मैं तेरी जुदाई में,
सामने मेरे सन्नाटे भी गुनगुना से गए.

-अंकित

दीवाना

उस शख्स के बारे में जिसके लिए यह कविता कही गयी है:

जलती है शम्मा तो परवाने आ ही जाते हैं,
चलती है तू लहरा के तो दीवाने आ ही जाते हैं !!!
-अंकित

दीवाना

दीवाना हूँ मैं तेरे बिना जीं नहीं सकता,
तू है वो ख़्वाब कि जिसे में भुला नहीं सकता

परवाना हूँ मैं जलने कि किस्मत बदलवा नहीं सकता,
तू है वो गीत जिसे होंठों से जुदा करा नहीं सकता

पैमाना हूँ मैं ऐसा के आंखों से छलका नहीं सकता,
तू है जिंदगी का वो रंग जिसे मैं हल्का करा नहीं सकता

बेगाना हूँ मैं जिसे सिवा तेरे कोई अपना नहीं सकता,
तू है अंकित इस दिल में तुझे मैं हरगिज़ मिटा नही सकता

-अंकित